लखनऊ,। जागरूकता और सजगता की वजह से बालिकाओं के साथ हो रहे भेदभाव में कमी आयी है। यही वजह है कि प्रदेश में प्री स्कूलों में दो से चार वर्ष की उम्र की बालिकाओं की संख्या बालकों से अधिक हैं। 2021 राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार बालिकाओं की उपस्थिति 13 फीसदी है। जबकि बालकों की 12 फीसदी है। 6-17 वर्ष आयु के बच्चे 80 प्रतिशत स्कूल जाते हैं। स्कूल की वार्षिक व बोर्ड की परीक्षा में अव्वल एवं उत्तीर्ण बालिकाओं की संख्या बालकों की तुलना में अधिक होती है। सरकार की ओर से महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान व स्वावलंबन तथा कन्या भ्रूणहत्या रोकने के प्रयास से बालिकाएं सशक्त हो रही हैं। यही वजह है कि बालिकाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
यूपी में लिंगानुपात बढ़ा
एनएफएचएस-पांच की रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 995 महिलाएं थी। जो 2020-21 में महिलाओं की संख्या बढ़कर 1017 हुई है। प्रदेश में संस्थागत प्रसव 67.8 प्रतिशत से बढ़कर 83.4 प्रतिशत हुए हैं। परिवार नियोजन के उपाय 45.5 प्रतिशत से बढ़कर 62.4 प्रतिशत। सुरक्षित प्रसव से मृत्य दर में भारी कमी आयी है।
बेटा-बेटी का अंतर कम हुआ
केजीएमयू की स्त्रत्त्ी एवं प्रसूति रोग विभाग की डॉ. सुजाता देव ने बताया कि जागरुकता से बेटे और बेटियों में अंतर कम हुआ है। लोग बेटियों को न सिर्फ बेहिचक जन्म दे रहे हैं। बल्कि उनका लालन पालन भी बेटों जैसा कर रहे हैं। उनकी हर ख्वाहिश पूरा कर रहे हैं। बेटियों के खान-पान में भी सुधार आया हे। प्रदेश में एनीमिया प्रभावित गर्भवती महिलाओं की संख्या में 5.1 प्रतिशत की कमी आई है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह कमी 1.8 प्रतिशत है। जबकि सामान्य से कम वजन के बच्चों के मामलों में 7.4 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई।
बेटियां अब पहले सेसजग हुई हैं। यही वजह है कि अपने ऊपर होने वाली हिंसा और अपराध के खिलाफ खुद आवाज उठा रही हैं। इसका उदाहरण 181 वन स्टॉप सेंटर दर्ज हुए छेड़छाड़, साइबर अपराध और घरेलू हिंसा के मामले में बेटियों ने खुद आगे बढ़कर मदद मांगी। सेंटर ने बेटियों की हिम्मत को भरोसे में बदला। सेंटर ने पुलस की मदद से अपराधियों को सजा दिलायी। लोक बंधु अस्पताल परिसर में संचालित 181 वन स्टॉप सेंटर की सेंटर मैनेजर अर्चना सिंह ने बताया कि अप्रैल 2023 से मार्च 2024 के बीच 1476 मामले दर्ज किये गए हैं। इनमें छेड़खानी, साइबर अपराध, व घरेलू हिंसा के मामले हैं। अर्चना सिंह कहती हैं कि बेटियों व महिलाओं की मदद गोपनीयता बनाकर की जाती है।