केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा कर दी है। हालांकि, कर्मचारी संगठन अभी इस संबंध में ‘टर्म्स ऑफ रेफरेंस’ का इंतजार कर रहे हैं। स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) के सदस्य और अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार का कहना है कि सरकार को इस बार बड़ा दिल दिखाना होगा। वर्तमान में 53 प्रतिशत की दर से महंगाई भत्ता (डीए) मिल रहा है। आठवें वेतन आयोग की सिफारिशें 1 जनवरी 2026 से लागू होंगी। इसका मतलब है कि अगले साल से वेतनमान में बदलाव होंगे।
महंगाई भत्ते की दर में वृद्धि की संभावना
इस दौरान यह संभव है कि डीए की दर 60 प्रतिशत या उससे अधिक हो जाए। अब तक सरकार ‘डॉ. एक्रायड’ फॉर्मूले के आधार पर वेतनमान को संशोधित करती रही है। श्रीकुमार के अनुसार, सरकार को अब इस फॉर्मूले से आगे बढ़ना चाहिए। बदलती आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए अगर आठवां वेतन आयोग ‘डॉ. एक्रायड’ फॉर्मूले से आगे बढ़कर अपनी सिफारिशें देता है, तो न्यूनतम वेतनमान 18,000 रुपये से बढ़कर 40,000 रुपये तक हो सकता है।
पिछले वेतन आयोग की सिफारिशें
सातवें वेतन आयोग ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनरों का वेतन बढ़ाने के लिए डॉ. एक्रायड फॉर्मूले का उपयोग किया था। इसके तहत न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह तय किया गया। आयोग का नेतृत्व करने वाले न्यायमूर्ति ए.के. माथुर ने सिफारिश की थी कि सरकार को हर साल वैल्यू इंडेक्स के आधार पर वेतनमान की समीक्षा करनी चाहिए, ताकि कर्मचारियों को बदलती आर्थिक परिस्थितियों से नुकसान न हो।
आठवें वेतन आयोग से अपेक्षाएं
श्रीकुमार का कहना है कि मौजूदा समय में बेसिक न्यूनतम वेतनमान 18,000 रुपये प्रतिमाह है। आठवें वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद यह बढ़कर 40,000 से 42,000 रुपये तक हो सकता है। सरकार को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए। आजकल स्कूल, अस्पताल जैसी सुविधाएं निजी हाथों में जा रही हैं, और सरकारी कर्मचारियों के लिए इनकी बढ़ती लागत को वहन करना मुश्किल हो रहा है।
डॉ. एक्रायड फॉर्मूले के तहत वेतनमान में संशोधन पर्याप्त नहीं होगा। कर्मचारी संगठनों, आर्थिक विशेषज्ञों, और अन्य देशों के अध्ययन को ध्यान में रखते हुए वेतन आयोग को अपनी सिफारिशें देनी चाहिए।
महिला और बच्चों के लिए नई गणना की जरूरत
कर्मचारी नेता के बताया, अब वो समय नहीं है, जब इंसान की जरुरत ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ तक सीमित थी। वर्तमान समय में इससे काम नहीं चलेगा। डॉ. एक्राय्ड फॉर्मूले में तो परिवार की महिला को एक फुल यूनिट के तौर पर नहीं गिना जाता है, जबकि वह महिला सबसे अधिक काम करती है। ऐसे में क्या उसे 75 प्रतिशत यूनिट के हिसाब से भोजना और कपड़ा दिया जाए। ये गणना बिल्कुल गलत है। आठवें वेतन आयोग में महिला को फुल यूनिट मानना होगा। उक्त फार्मूले में तो बच्चों को तो छोटा ही माना जाता है। श्रीकुमार ने कहा, यहां पर सवाल खड़ा होता है कि क्या बच्चे, हमेशा बच्चे ही रहते हैं। क्या वे बड़े नहीं होते। क्या उनकी जरुरतें नहीं बढ़ती। आठवें वेतन आयोग में बच्चों को बड़ा मानना होगा। तभी सही मायने में जरुरतों के मुताबिक वेतनमान रिवाइज हो सकेगा।
डिजिटल युग में नई चुनौतियां
आज के डिजिटल युग में मोबाइल और इंटरनेट जैसी चीजें भी जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं। वेतन आयोग को इन खर्चों को भी ध्यान में रखना चाहिए। श्रीकुमार ने यह भी बताया कि 2004 में लागू की गई एनपीएस (नेशनल पेंशन स्कीम) के कारण कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। इसके तहत कर्मचारियों को अपने वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा जमा करना होता है, जिससे उनकी आय पर असर पड़ा है।
सरकार से अपेक्षाएं
वेतन संरचना को इस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए कि मुद्रास्फीति के कारण कर्मचारियों की क्रय शक्ति पर असर न पड़े। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वेतन संरचना इतनी प्रतिस्पर्धात्मक हो कि प्रतिभाशाली लोग सरकारी सेवा में शामिल होना चाहें।
सरकारी सेवा केवल एक अनुबंध नहीं है, बल्कि यह एक प्रतिष्ठा है। कर्मचारियों को केंद्र सरकार से उचित व्यवहार की उम्मीद है, और राज्य सरकारों को इस क्षेत्र में एक रोल मॉडल के रूप में काम करना चाहिए। इससे कर्मचारियों का उत्साह बढ़ेगा और वे अपने कर्तव्यों का बेहतर तरीके से निर्वहन कर पाएंगे।