प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कर्मचारी की मृत्यु के पांच साल के भीतर दाखिल अनुकंपा नियुक्ति का दावा फैसले की तारीख के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। क्योंकि, दावे पर फैसला लेने की जिम्मेदारी नियोक्ता की है।
यह टिप्पणी कर न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की अदालत ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के मृतक कर्मचारी के आश्रित बेटे दिव्यांशु पांडे की याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने कहा कि अगर अनुकंपा नियुक्ति का दावा मृत्यु के पांच साल के भीतर कर दिया गया है तो उस पर समय से विचार कराना नियोक्ता की जिम्मेदारी है। समयसीमा पार होने तक दावे को लंबित रखने का लाभ नियोक्ता को दिया जाना मनमाना ही नहीं, बल्कि कर्मचारियों के हितों के भी खिलाफ होगा। मामले में याची का दावा कर्मचारी की मृत्यु के पांच वर्ष के भीतर था।
याची के अधिवक्ता विभु राय की दलील थी कि इविवि में कार्यालय सहायक के पद पर तैनात याची के पिता की मृत्यु 20 जनवरी 2014 में हुई थी। पहले याची की मां ने अनुकंपा नियुक्ति का दावा पेश किया था, जिसे अधिक उम्र व पेंशनभोगी होने के आधार पर खारिज कर दिया गया।
बालिग होने के बाद याची ने 2018 में दावा किया। इस पर विचार के लिए याची को आठ जून 2020 को इविवि प्रशासन ने बुलाया। लेकिन, फैसले को 2022 में दावा खारिज कर दिया गया। कहा गया कि मां का दावा पहले ही खारिज हो चुका है, इसलिए दोबारा नहीं किया जा सकता। इस आदेश को चुनौती दी गई।
हाईकोर्ट के आदेश पर इविवि ने पुनर्विचार किया। लेकिन, 2023 को दोबारा इस आधार पर खारिज कर दिया कि कर्मचारी की मृत्यु को पांच वर्ष बीत चुके हैं। इसके बाद अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर इविवि के आदेश को रद्द कर दिया। वहीं, रजिस्ट्रार को याची के दावे पर नये सिरे से विचार करने का आदेश दिया है।