माध्यमिक शिक्षा विभाग उप्र शैक्षिक सेवा नियमावली 1992 में करेगा संशोधन
लखनऊ। प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से उप्र शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग) सेवा नियमावली 1992 में संशोधन की तैयारी तेज कर दी गई है। शासन ने इसके तहत समूह ख (प्रधानाचार्य राजकीय इंटर कॉलेज) के पदों में पदोन्नति कोटा में बदलाव करने की तैयारी शुरू कर दी है।
इसमें अधिकारियों का कोटा पहले की अपेक्षा बढ़ाने का प्रस्ताव है। वहीं राजकीय शिक्षक संघ की ओर से इसका विरोध शुरू कर दिया गया है। माध्यमिक शिक्षा विभाग के विशेष सचिव उमेश चंद्र की ओर से हाल ही में माध्यमिक शिक्षा निदेशक को पत्र भेजकर कहा गया है कि वर्तमान में महिला शाखा के विद्यालयों के बढ़ने और निरीक्षण शाखा (अधिकारी संवर्ग) के पुनर्गठन होने के कारण संख्या और वेतनमान में भी अंतर आया है। ऐसे में समूह ख में पदोन्नति कोटे के पदों में पुरुष, महिला व निरीक्षण शाखा में कोटे का पुनर्निर्धारण किया जाना आवश्यक है।
उन्होंने कहा है कि इसके तहत पुरुष व महिला शाखा का कोटा 33 33 और निरीक्षण शाखा का कोटा 34 फीसदी करना उचित है, जो पूर्व
शासन ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को दिए निर्देश
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राजकीय माध्यमिक शिक्षक संघ ने जताई आपत्ति
में क्रमशः 61, 22 व 17 फीसदी है। ऐसे में इस बदलाव से अधिकारी संवर्ग का कोटा 17 से सीधे 34 फीसदी हो जाएगा।
इस पर राजकीय शिक्षक संघ ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। संघ के प्रांतीय अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद पांडेय, प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष जेड आर खान आदि ने इसके विरोध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजा है।
उन्होंने कहा है कि उत्तर प्रदेश शैक्षिक संवर्ग समूह ख के पदों पर नियम विरुद्ध खंड शिक्षा अधिकारियों के लिए कोटा बढ़ाए जाने की तैयारी है। शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा राजकीय शिक्षक-शिक्षिकाओं व राजकीय शिक्षक संघ को बिना सुने खंड शिक्षा अधिकारियों को 34 फीसदी का कोटा दिया जा रहा है।
यह नियमानुसार ठीक नहीं है, क्योंकि शैक्षिक सामान्य शिक्षा संवर्ग के पदों में पदोन्नति के लिए खंड शिक्षा अधिकारियों का कोई कोटा निर्धारित नहीं है। इनको समूह ख के पदों पर पदोन्नत किया जाना सही नहीं है। लोकसेवा आयोग समूह ख के पदों पर चयन के लिए कम से कम तीन साल तक पढ़ाने का अनुभव मांगता है, जो खंड शिक्षा अधिकारियों के पास नहीं है।
माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारी यह काम नियम विरुद्ध कर रहे हैं। ऐसे में राजकीय शिक्षक-शिक्षिकाओं के हितों की रक्षा नहीं हुई तो वे न्यायालय की शरण में जाने को बाध्य होंगे।