👉 अब न्यायालय में होनी चाहिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के इस मानक की व्याख्या
👉क्या किसी प्राइमरी स्कूल में 1 से 150 तक की छात्र संख्या होने पर प्रधानाध्यापक नहीं नियुक्त होना चाहिए? मेरी सोच यह कहती है कि हमारे लॉ मेकर्स ने यह सोचकर यह मानक तय किया होगा कि 150 से अधिक छात्र संख्या होने पर अनिवार्य रूप से हेड मास्टर की तैनाती की जाए। लेकिन ग्राउंड जीरो पर यह मान लिया गया कि 150 तक प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक की तैनाती ही न की जाए। लेकिन यदि यह मानक मेरी इस सोच के अनुसार नहीं तय किया गया है तो क्या -👇
👉कोई शिक्षण संस्थान बिना किसी प्रधानाचार्य के संचालित हो सकता है? बिना वेतन के प्रभारी की कामचलाऊ व्यवस्था से विद्यालय संचालन कितनी गंभीरता से होगा?
👉यदि यह मानक सही है तो फिर बैंकों में भी जब तक दस हजार खाते न खुल जाएं(या जो भी निर्धारित किया जाए) तब तक बैंक में शाखा प्रबंधक की तैनाती न की जाए। क्लर्कों को प्रभारी बनाकर(प्रबंधक का वेतन दिए बिना) शाखा संचालन किया जाए।
👉जब तक थानों में इतने(कोई भी संख्या मानक) केस न दर्ज हो जाएं तब तक एसएचओ की तैनाती नहीं।
👉जब तक क्षेत्र में इतनी नहरें, नलकूप, रजबहे आदि न खोदी जाएं तब तक अवर अभियंता, सहायक अभियंता या अधिशासी अभियंता आदि की तैनाती न की जाए।
👉जब तक क्षेत्र में बिजली के इतने कनेक्शन न हो जाएं तब तक जेई, एसडीओ और एक्सइएन की तैनाती नहीं।
आप इसी तरह प्रत्येक विभाग के लिए मानक तय कर सकते हैं।
क्या यह सब संभव है? बिलकुल नहीं। कोई संस्थान बिना हेड के कैसे संचालित हो सकता है? समाज में कोई भी निजी स्कूल देखेंगे, वहां सबसे पहले प्रधानाचार्य खोज कर नियुक्त करते हैं और यहां? शिक्षक संगठन इस मुद्दे पर सोते रहे…इसके लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए। यह न केवल स्कूल व उसके बच्चों के साथ अन्याय है बल्कि सम्पूर्ण समाज इससे
प्रभावित होगा।