नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पांच पूर्व कर्मचारियों के पेंशन अधिकार को बरकरार रखा। कोर्ट ने आदेश में कहा कि अस्थायी स्थिति में उनकी दशकों की सेवा को पेंशन लाभ से वंचित करने के औचित्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता 20 वर्ष से अधिक समय से विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ( वेलदार दिहाड़ी मजदूर) के तौर पर कार्यरत थे। अदालत ने कर्मचारियों को अस्थायी रोजगार की स्थायी स्थिति में रखने की लंबे समय से चली आ रही प्रथा की भी आलोचना की।
याचिकाकर्ता विरमा देवी, धन्नो, नारायणी देवी,, सिलमान और शेर
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ये है मामला वर्ष 1980
बहादुर राम से एएसआई के साथ दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम कर रहे थे। चूंकि वह संविदा के तौर पर निकाय से जुड़े थे ऐसे में उन्हें पेंशन का हकदार नहीं माना गया। जिसे हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए पेंशन दिए जाने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर तथा न्यायमूर्ति अजय दिगपॉल की खंडपीठ ने फरवरी के पहले सप्ताह में दिए अपने आदेश में याचिकाकर्ताओं को पेंशन से वंचित करने वाले आदेश को रद्द कर दिया। जिनमें से सभी ने 2010 से
2014 के बीच सेवानिवृत्त होने से पहले दो दशकों से अधिक समय तक सेवा की थी।
न्यायालय ने माना कि वे नियमित कर्मचारियों के समान पेंशन लाभ के हकदार हैं। अधिकारियों को आठ सप्ताह में उनका बकाया जारी करने का निर्देश दिया। किसी भी देरी की स्थिति में, न्यायालय ने उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि से भुगतान किए जाने तक 12% प्रति वर्ष की दर से ब्याज लगाया। अदालत ने कहा कि अस्थायी अनुबंध मूल रूप से अल्पकालिक या मौसमी जरूरतों के लिए थे, लेकिन अब उनका दुरुपयोग कर्मचारियों को उनके उचित लाभों से वंचित करने के लिए किया जा रहा है।