प्रयागराज। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में एमए योग में प्रवेश का रास्ता साफ हो गया है। कुलपति प्रो. सत्यकाम ने बताया कि जनवरी-2025 सत्र में नई शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप एमए योग कार्यक्रम में प्रवेश प्रारंभ कर दिया गया है। उसी के अनुरूप अब एमए योग में प्रवेश परीक्षा के माध्यम से दाखिले होंगे।
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विवि ने प्रवेश के लिए तैयारियां पूरी कर ली हैं। 31 मार्च तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। अभ्यर्थियों
के लिए ऑनलाइन पंजीकरण, आवेदन एवं शुल्क भुगतान विश्वविद्यालय ने प्रारंभ कर दिया है। इसकी अंतिम तिथि 17 मार्च 2025 निर्धारित की गई है। अभ्यर्थी वेबसाइट से 18 मार्च से प्रवेश पत्र डाउनलोड कर सकेंगे। प्रवेश परीक्षा 20 मार्च 2025 को प्रस्तावित की गई है।
विवि ने अभ्यर्थियों की सुविधा के लिए वेबसाइट पर एमए योग से संबंधित लिंक उपलब्ध करा दिया है, जहां इस कार्यक्रम से संबंधित सभी सूचनाएं उपलब्ध हैं। ब्यूरो
अपनी भाषा में 40% को शिक्षा नहीं
नई दिल्ली, एजेंसी। दुनिया की 40 फीसदी आबादी को ऐसी भाषा में शिक्षा नहीं मिलती जिसे वे समझते या बोलते हैं। कुछ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह आंकड़ा 90 फीसदी तक पहुंच जाता है, जिससे 25 करोड़ से अधिक विद्यार्थी प्रभावित हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आए हैं।
प्रवासी छात्रों पर असरः यूनेस्को के ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग (जीईएम) टीम की रिपोर्ट ‘लेंग्वेजिस मैटरः ग्लोबल गाइडेंस ऑन मल्टिलिंग्युअल एज्युकेशन’ में कहा गया है, भाषा की विविधता इस मामले में दिक्कत बन रही है। खासकर प्रवास के कारण अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले विद्यार्थी एक ही कक्षा में पढ़ रहे हैं। 3.1 करोड़ विस्थापित युवा भाषा की बाधाओं के कारण गुणवत्तापूण् शिक्षा से वंचित हैं। कई देशों ने मातृभाष में शिक्षा की जरूरत को समझा है लेकिन इसे नीति में बदलने और लाग् करने में कई बाधाएं हैं।
रिपोर्ट में सुझाव
■ शिक्षा नीति को देश के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ के अनुसार तैयार किया जाए।
मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
■ भाषा के लिए विशेष पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जाए
भारत में भी जारी है बहस
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जर भारत अपनी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) लागू कर रहा है, जो बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देती है। हालांकि, स्कूलों में लागू तीन-भाषा नीति को लेकर कुछ राज्यों में असहमति देखी गई है।