कानपुर। बच्चा रोए न और दूध पीता रहे, इसके लिए उसे मोबाइल थमा देना नुकसानदेह साबित हो रहा है। बच्चों को स्क्रीन एडिक्शन हो रहा है। उनके विकास, भाषा सीखने और फूड हैबिट की प्रक्रिया बाधित हो रही है।
भावनात्मक रूप से माता-पिता और बच्चे के बीच दूरी बढ़ रही है। बच्चे घर वालों के बजाय मोबाइल की भाषा अधिक समझ रहे हैं। कुछ बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म की समस्या हो गई। हालात के मद्देनजर भारतीय बालरोग अकादमी ने जागरूकता अभियान शुरू किया है। सेंट्रल साइकेट्रिक सोसाइटी ने बच्चों के आंकड़े एकत्र क शोध शुरू किया है।
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बच्चों में स्क्रीन का एडिक्शन उनकी पढ़ाई में बाधा बन रहा है। मिजाज में चिड़चिड़ापन आ गया और नींद के घंटे कम हो गए हैं। अकादमी के सचिव और वरिष्ठ बालरोग विशेषज्ञ डॉ. अमितेश यादव ने बताया कि स्क्रीन टाइम से आंख की रोशनी भी प्रभावित हो रही है। बच्चों की आंख जल्दी खराब हो रही है। चिंता का विषय यह है कि मां-बाप खुद ही स्क्रीन की लत बच्चों में पैदा करते हैं। दुष्प्रभाव आने पर अस्पतालों में आ रहे हैं।
सेंट्रल साइकेट्रिक सोसाइटी के महासचिव वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. गणेश शंकर ने शोधों के हवाले से बताया कि बच्चों के मुंह में बोतल लगाकर हाथ में मोबाइल थमाने से बच्चों में खाने की आदतों और आत्म नियमन क्षमता प्रभावित हो रही है।
ये दिक्कतें भी आ सकती हैं
■ बच्चे में भाषा का ढंग से विकास नहीं होगा
■ को अलग-अलग खाने की पहचान, स्वाद पकड़ने में दिक्कत होगी
■ स्क्रीन देखते हुए खाने से बच्चा मोटापाग्रस्त हो सकता है
■ मानसिक सहन क्षमता कम होगी
■ नेत्र रोग हो सकते हैं, आंख की रोशनी प्रभावित होगी
■ घर वालों से भावनात्मक लगाव कम होगा
बचाव
दो साल की उम्र तक बच्चों को मोबाइल न देखने दें
■ दो साल के बाद सिर्फ एक घंटे टीवी स्क्रीन देखने दें
■ मां अपना दूध पिलाए, बोतल से भी पिलाएं तो गोद में लिए रहें
■ बच्चा रोए तो फोन देकर चुप कराने के बजाय उसकी दिक्कत समझें
■ दूध पिलाते समय बच्चे से बात करें
■ बच्चे को खाना खिलाते वक्त खुद भी स्क्रीन न देखें