मूर्ख दिवस, यानी 1 अप्रैल से शुरू होता है हिसाब -किताब का नया साल यानी वित्त वर्ष। कमाने वाले हों या खर्च करने वाले, चाहे-अनचाहे सभी को यह साल मनाना पड़ता है।
नवरी में कैलेंडर बदलता है और नया साल आता है। होली पर नववर्ष की शुभकामनाओं के संदेश आते हैं और दिवाली पर भी। दिवाली पर तो चोपड़ा पूजन, यानी बही-खातों की पूजा भी की जाती है और नए बही-खाते के साथ नया साल मनाया जाता है। इस्लाम के अनुयायी हिजरी कैलेंडर के हिसाब से नया साल मनाते हैं। इतना ही काफी नहीं है, गुड़ी पड़वा, उगाडी, पोइला बैशाख, विशु, पुथंडु, बिहू, लोसर और नौरोज नाम के त्योहार भी नए साल की शुरुआत के सूचक हैं।
मगर इन सबसे अलग एक नया साल अप्रैल से शुरू होता है और देश के हर हिस्से में, हर धर्म के मानने वालों पर इस नए साल का बराबर असर होता है। मूर्ख दिवस, यानी 1 अप्रैल से शुरू होता है, हिसाब -किताब का नया साल, यानी वित्त वर्ष। चाहे या अनचाहे सभी को यह साल मनाना पड़ता है। खासकर कमाने, बचाने और खर्च का हिसाब रखने वालों को।

हर साल मार्च के अंत में आपके सामने एक सूची आती है कि 1 अप्रैल से क्या-क्या बदलाव होने वाले हैं और किस तरह आपको उन बदलावों के लिए तैयार होना है। यह सूची न आए, तब भी कुछ रस्मी तैयारियां हैं। लेटलतीफ या लापरवाह लोगों के लिए सितंबर, दिसंबर और जनवरी में अलार्म बजने के बाद भी मार्च वह महीना होता है, जब वे किसी तरह खींच-खांचकर अपने निवेश पूरे करते हैं, कमाई का हिसाब जोड़ते हैं, कोई पॉलिसी खरीदते हैं या सीए के हाथ जोड़ते हैं कि किसी तरह टैक्स बचाने का इंतजाम कर दो। करीब-करीब हर बार इस संकल्प के साथ कि अगली बार से तो अप्रैल में ही सब कुछ ठीक कर देंगे।
तो अब मौका है। जब तू जागे, तभी सवेरा की तर्ज पर इस साल अपनी टैक्स प्लानिंग और बेहतर भविष्य की योजना भी अप्रैल में ही बनाकर अंजाम देने वालों को साल के अंत में शायद हिसाब नहीं लगाना पड़ेगा, लेकिन जिन लोगों ने इस साल की शुरुआत में ही अपने कील-कांटे दुरुस्त कर रखे थे, उनके लिए भी इस बार अप्रैल काफी कुछ लेकर आ रहा है। कई साल बाद आगामी वित्त वर्ष में इनकम टैक्स की लिमिट ही नहीं बढ़ रही है, बल्कि और भी ऐसा बहुत कुछ हो रहा है, जिससे आपकी जेब या आपके हिसाब-किताब पर असर पड़ने वाला है। इसलिए इस बार काफी कुछ समझना-जानना जरूरी है। बारह लाख रुपये तक की कमाई टैक्स फ्री होने वाली है, यह खबर तो सबके पास आ चुकी है, लेकिन इसका पूरा फायदा उठाने के लिए जो कुछ करना है, उसे जानना जरूरी होगा।
सबसे पहला कदम तो यही है कि आपको नई टैक्स व्यवस्था या न्यू टैक्स की शरण मेंजाना होगा। खासकर अगर आपकी कमाई बारह लाख रुपये के अंदर या उसके आसपास है और आपने टैक्स बचाने के चक्कर में पहले से कोई ऐसा निवेश या इंश्योरेंस नहीं पकड़ रखा है, जिसमें आपको हर साल पैसा भरना है। नई टैक्स रिजीम में इस तरह की छूट नहीं मिलनी है। ऐसी छूट लेनी है, तो पुरानी व्यवस्था के भरोसे रहना होगा। उसमें भी यह छूट खत्म होती जाएगी, ऐसे आसार दिख रहे हैं। साफ है कि सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों, खासकर नए करदाताओं को इनकम टैक्स की नई व्यवस्था से जोड़ने की कोशिश कर रही है। इसके साथ एक और बात हो रही है कि अब लोगों को टैक्स बचाने के लिए निवेश करने की जरूरत महसूस नहीं होगी। इससे पीपीएफ, एनएससी या बीमा से जुड़े प्रोडक्ट का ऐसा इस्तेमाल कम होने के आसार हैं।
इनकम टैक्स के मामले में यह ध्यान रखना जरूरी है कि जो लोग पुरानी प्रणाली में रहना चाहते हैं, उन्हें इसके लिए सावधानी से विकल्प चुनना होगा, क्योंकि अगर आपने चयन नहीं किया, तो फिर रिटर्न अपने आप नई प्रणाली से ही भरा जाएगा। मगर स्रोत पर टैक्स कटौती या टीडीएस के मामले में बुजुर्गों को राहत मिलेगी। अब उन्हें बैंक के एफ डी, आर डी जैसे खाते में एक लाख रुपये तक की ब्याज-आय बिना कर कटौती के मिलेगी। बाकी ग्राहकों लिए भी यह सीमा पचास हजार रुपये की गई है। कई और मामलों में भी टीडीएस और टीसीएस की सीमा बढ़ाई गई है, जिससे खासकर छोटे करदाताओं को राहत मिलेगी।
इसके साथ ही जल्दी ही प्रॉविडेंट फंड का पैसा यूपीआई के रास्ते निकाला जा सकेगा, इसकी तैयारी भी तेज है। इससे बहुत से जरूरतमंद लोगों को फायदा होगा। हालांकि, इसकी आलोचना भी हो रही है, क्योंकि पीएफ या भविष्य निधि को रिटायरमेंट के बाद के वक्त के लिए सुरक्षित रखना ही समझदारी माना जाता है।
यह नया वित्त वर्ष कई मोर्चों पर राहत और सुरक्षा भी लेकर आ रहा है। बारीकी से देखें, तो वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक और सेबी की तरफ से ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं, जिनका असर आम उपभोक्ता, करदाता और बैंक या डीमैट खाता धारकों की जिंदगी पर सीधे या परोक्ष रूप से पड़ेगा। इनका इरादा बैंकिंग प्रणाली या पूरे आर्थिक ढांचे को मजबूत करना, पारदर्शिता बढ़ाना और डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उसे ज्यादा सुरक्षित बनाना भी है।
बैंक खातों और लेन-देन को लेकर कुछ कड़ाई भी होने जा रही है। अनेक बैंक एलान कर चुके हैं कि वे खातों में न्यूनतम जमा राशि की सीमा बढ़ाने जा रहे हैं। शहरों में यह रकम पांच हजार रुपये, कस्बों या अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में 3,500 और गांवों में 2,500 रुपये हो सकती है। खाते में यह बैलेंस नहीं रहा, तो पैनाल्टी लग सकती है। बचने का रास्ता है कि या तो इतनी रकम हमेशा खाते में रखें या फिर जीरो बैलेंस खाता खुलवा लें। दूसरी तरफ, बैंकों से पैसा निकालना भी मुश्किल होने वाला है। एटीएम से पैसा निकालने पर भी फीस लग सकती है और बड़ी रकम के चेक काटने से पहले भी अपने बैंक को खबर करना या पॉजिटिव पे का इस्तेमाल करना जरूरी होगा। इसकी वजह धोखाधड़ी रोकना बताया जा रहा है, लेकिन कुल मिलाकर, नकदी के इस्तेमाल को कम करना भी उद्देश्य है।
डिजिटल बैंकिंग में भी बायोमेट्रिक और टू फैक्टर ऑथेंटिकेशन को जरूरी किया जाएगा। इससे सुरक्षा बढ़ेगी, लेकिन थोड़ी मुश्किल भी। जो यूपीआई खाते ऐसे मोबाइल नंबरों से जुड़े हैं, जो एक्टिव नहीं हैं, उनका लेन-देन भी अब बंद हो जाएगा। इसलिए जरूरी है कि अपने बैंक खाते से जुड़े फोन को लगातार सक्रिय रखें, वरना मुश्किल आ सकती है।
बैंकों में एफ डी और आर डी की ब्याज दरें भी 1 अप्रैल से बदल रही हैं। जो बदलाव हो रहे हैं, वे कुछ चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं, मगर नए अवसर फायदे भी ला रहे हैं। जरूरी है कि सही तैयारी और नियमों की जानकारी रखकर लाभ उठाए जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
आलोक जोशी (वरिष्ठ पत्रकार)