*आप सभी वरिष्ठ गुरूजनों को दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है*
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*बच्चों का संविधान के अनुच्छेद 21(A) के अनुसार यह मौलिक अधिकार है कि उनको योग्य शिक्षक शिक्षा दे, 23 अगस्त 2010 के पहले जो नियुक्त हैं, उनका भी संविधान के अनुच्छेद 21 व 16 में मौलिक अधिकार है कि उनको जीवन जीने का अधिकार है,अनुच्छेद 16 के अनुसार उनपर कोई Retrospective कानून नहीं बनाया जा सकता है, अगर बच्चों का शिक्षा का मामला है तो 29-07-2011 के पहले नियुक्त शिक्षको का भी पेट का मामला है, मै इस बात के लिए नहीं प्रेरित कर रहा हूँ कि कोई TET/CTET परीक्षा न दे, मै स्वयं भी TET/CTET देकर उत्तीर्ण होता रहता हूँ, परन्तु अधिकतर वरिष्ठ गुरूजन बहुत योग्य हैं, परन्तु वे TET/CTET नहीं उत्तीर्ण कर सकते और कुछ तो इस परीक्षा में सम्मिलित होने हेतु अनर्ह भी हैं, परन्तु NCTE यदि दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर परीक्षा में शामिल भी कर लेती है तो मुझे इस बात से गुरेज नहीं है कि अधिकतर लोग TET उत्तीर्ण नहीं होंगे, इसका प्रमाण यह है कि पौने दो लाख शिक्षामित्र थे, मगर मात्र 50000 लोग ही TET उत्तीर्ण कर सके थे, अतः पूरी निष्ठा के साथ मै वरिष्ठ गुरूजनों के साथ खड़ा हूँ, 23 अगस्त 2010 के पैरा 4 के निरसन की बात जो हो रही है, यह RTE एक्ट सेक्शन 23(2) का मामला ही नहीं है, वास्तव में सेक्शन 23(2) से जो जरूरतमंद राज्यों को जो राहत मिलती, वे पहले 31 मार्च 2015 तक थी, जोकि 2017 में संशोधित करके 31 मार्च 2019 तक बढ़ा दी गई थी, वर्तमान में सेक्शन 23(2)का लाभ नहीं मिल सकता, बाकी जो RTE ऐक्ट लागू होने के पूर्व नियुक्त हैं उनकी सेवा जारी रखने पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता, आप सब परेशान न हों इसको हम व्यापक रूप से Explain करेंगे*
✍️ राघवेन्द्र पाण्डेय