नाबालिग से दुष्कर्म में बरेली के दोषी को मिली उम्रकैद की सजा 15 साल के कारावास में तब्दील
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी को मिली उम्रकैद 15 साल की सजा में तब्दील कर दी। कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देकर कहा, क्रूर कैद व्यक्ति के दिमाग को खराब कर देती है। सजा निर्धारित करते समय अदालत को ‘आनुपातिकता के सिद्धांत’ को ध्यान में रखना चाहिए। सजा इतनी कठोर भी नहीं होनी चाहिए कि व्यक्ति का दिमाग खराब हो जाए और उसमें सुधार की संभावनाएं ही खत्म हो जाएं।

यह फैसला न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की
अदालत ने हर प्रसाद की ओर से उम्रकैद की सजा के खिलाफ दाखिल अपील को आशिंक रूप से स्वीकार करते हुए सुनाया है। मामला बरेली के विथरी चैनपुर थाना क्षेत्र का है। 2012 में हरप्रसाद के खिलाफ सात वर्षीय बेटी के पिता ने दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज कराई थी। उन्होंने बताया था कि उनकी बेटी शाम साढ़े पांच बजे से गायब थी।
रात में रोते हुए घर पहुंची तो मां को बताया कि आरोपी ने उसे खेत में खींच कर दुष्कर्म किया।
पुलिस ने विवेचना के बाद आरोप पत्र दाखिल किया। इस पर चले ट्रायल के बाद 2014 में बरेली की जिला व सत्र अदालत ने उसे उम्रकैद व 15,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ दोषी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अपीलार्थी के वकील ने दलील दी कि वह सजा पर नहीं, उसकी मात्रा पर सवाल उठाना चाहता है। अपीलार्थी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। मामले में ऐसी कोई गंभीर
परिस्थिति मौजूद नहीं है कि उसे आजीवन कारावास की सजा दी जाए।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला भी दिया। कहा कि देश का दांडिक न्याय विधिशास्त्र प्रतिशोधात्मक नहीं है, बल्कि सुधारात्मक है। लिहाजा, आपराधिक न्याय प्रणाली में अंतर्निहित सुधारात्मक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए अनुचित कठोरता से भी बचा जाना चाहिए। कोट ने अपील आशिंक रूप से स्वीकार कर ली। दोष सिद्धि को कायम रखते हुए उम्रकैद की सजा 15 वर्ष की अवधि के कारावास में तब्दील कर दी। ब्यूरो