जिले के राजकीय विद्यालयों में नए शैक्षणिक सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन कई विद्यालयों में हिंदी, गणित, अंग्रेजी और विज्ञान के शिक्षकों के पद खाली हैं। इससे पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है। कई विद्यालयों में तो प्रधानाचार्य ही कक्षाओं में पढ़ा रहे हैं।
जिले में कुल 31 राजकीय विद्यालय हैं। इनमें से नौ इंटर कॉलेज और 22 हाईस्कूल शामिल हैं। शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार, हर राजकीय हाई स्कूल में प्रधानाचार्य सहित शिक्षकों के सात पद स्वीकृत हैं। हालांकि, वास्तविकता इससे कोसों दूर है। अधिकांश विद्यालयों में हिंदी, गणित, अंग्रेजी और विज्ञान जैसे मुख्य विषयों के शिक्षकों के पद पिछले दो से चार साल से खाली हैं।

विद्यालय प्रबंधन ने रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए शासन को कई बार पत्र लिखा गया है, लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है।
शिक्षकों की कमी से समस्या
राजकीय हाईस्कूल बेसहूपुर की प्रधानाचार्य ने कहा कि विद्यालय में कक्षा नौ और दस के छात्रों को पढ़ाने के लिए सात शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में केवल पांच शिक्षक ही कार्यरत हैं। गणित और अन्य महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं, जिससे छात्रों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है।
प्रधानाचार्य स्वयं गणित विषय पढ़ा रहीं हैं, जिससे प्रशासनिक कार्यों पर भी असर पड़ रहा है। राजकीय हाई स्कूल सगहट में भी सात पदों पर केवल पांच शिक्षक ही तैनात हैं।
गृह विज्ञान, संस्कृत और हिंदी जैसे विषयों के शिक्षक विद्यालय में नहीं हैं। छात्रों को इन विषयों की पढ़ाई के लिए या तो अन्य शिक्षकों पर निर्भर रहते हैं या फिर बिना शिक्षकों के ही पढ़ाई करनी पड़ती है। राजकीय विद्यालय हसनपुर में भी सात के बजाय केवल पांच शिक्षक ही कार्यरत हैं।
गणित के साथ-साथ कंप्यूटर शिक्षा के लिए भी आज तक कोई शिक्षक नियुक्त नहीं किया गया है। कंप्यूटर का युग होने के बावजूद, छात्रों को इस महत्वपूर्ण विषय की बुनियादी शिक्षा भी नहीं मिल पा रही है। महगांव के राजकीय हाईस्कूल में स्थिति और भी चिंताजनक है।
यहां स्वीकृत सात पदों में से केवल चार शिक्षक ही तैनात हैं। गणित, संस्कृत सहित तीन विषयों के शिक्षक विद्यालय में उपलब्ध नहीं हैं। शिक्षकों की कमी के कारण छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाना मुश्किल हो रहा है।
प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ शिक्षण का अतिरिक्त बोझ
हैरानी की बात यह है कि पिछले सात वर्षों से विद्यालय की प्रधानाचार्य, लक्ष्मी पांडेय, स्वयं गणित पढ़ा रही हैं। प्रधानाचार्य पर प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ शिक्षण का भी अतिरिक्त बोझ है, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है। राजकीय विद्यालयों में शिक्षकों की कमी कोई नई समस्या नहीं है, लेकिन इसका समाधान न होना शिक्षा विभाग की उदासीनता को दर्शाता है।
हर साल नए सत्र में प्रवेश प्रक्रिया शुरू होती है, लेकिन शिक्षकों की कमी की समस्या जस की तस बनी रहती है। विद्यालय प्रबंधन द्वारा बार-बार शिकायत करने के बावजूद शासन स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।
खाली पदों पर नई नियुक्ति के लिए शासन को हर साल सूची भेजी जाती है। सत्र शुरू होने से पहले भी निदेशालय को खाली पदों की जानकारी दी गई। नियुक्ति होने के बाद शिक्षकों को तैनात किया जाएगा। – अवध किशोर सिंह, जिला विद्यालय निरीक्षक