नई दिल्लीः स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार एक माडल ड्राफ्ट तैयार करने जा रही है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पास ही मनमानी फीस पर रोकथाम के लिए कानून है। इनमें सबसे सख्त कानून उप्र में है, जिसे 2018 में लाया गया था।
शिक्षा मंत्रालय ने यह पहल नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सिफारिशों को लागू करने के क्रम में शुरू की है। इसे लेकर नीति की सिफारिशों सहित देशभर में स्कूली फीस को नियंत्रित करने से जुड़े कानूनों का भी अध्ययन किया जुड़ है। मनमानी फीस वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए जो ड्राफ्ट का स्वरूप सामने आया है, उसमें सभी स्कूल अब एक ही मानक के आधार पर न फीस वसूल सकेंगे न ही फीस में वृद्धि कर सकेंगे। स्कूलों को स्टैंडर्ड के हिसाब से इसे निर्धारित करने का अधिकार मिलेगा। सभी राज्यों को स्कूलों की एक रैंकिंग तैयार करनी होगी। प्रत्येक राज्य व केंद्र शासित प्रदेश में एक राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण (एसएसएसए) नामक एक स्वतंत्र निकाय स्थापित करना होगा। साथ ही फीस का निर्धारण और वृद्धि को जिला शुल्क नियामक समिति की मंजूरी के बगैर लागू नहीं किया जा सकेगा। इस समिति में जिला अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी, अभिभावक संघ व स्कूल संघ के भी प्रतिनिधि शामिल होंगे।

इन नियमों के तहत फैसले को न मानने पर स्कूलों पर कार्रवाई भी की जा सकती है। इनमें जुर्माना और सजा दोनों है। जुर्माना भी पहली बार एक लाख होगा। यदि दूसरी बार भी गलती की तो पांच लाख होगा.
तैयार हो रहे ड्राफ्ट से जुड़े कुछ अन्य बिंदु
👉फीस के अतिरिक्त और किसी भी तरह की फीस स्कूल नहीं ले सकेंगे।
👉स्कूलों को अपनी फीस, ड्रेस, किताबों आदि से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। इसकी जानकारी नया सत्र शुरू होने से पहले जिला शुल्क नियामक समिति को भी देनी होगी।
👉स्कूल एक मुश्त सालभर की फीस नहीं ले सकेंगे। उन्हें अभिभावकों को छह, तीन और एक माह का विकल्प देना होगा.
👉 फीस से जुड़े किसी भी विषय को अभिभावक समिति के समझ चुनौती दे सकेगा। इस पर समिति को पंद्रह दिन के भीतर फैसला लेना होगा। समिति सिविल कोर्ट की तरह सुनवाई करेगी।
👉 समिति का निर्णय सभी को मानना होगा। इसे महीने भर में मंडल फीस नियामक समिति के सामने चुनौती दी जा सकती है। सहमत नहीं होने पर राज्य फीस नियामक के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।