लखनऊ महानिदेशक स्कूल शिक्षा कार्यालय के बाहर छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लिए शिक्षक दंपती हाथों में तख्तियां लिए धरने पर बैठे थे। आवाज एक थी, ‘हमें साथ रहने दीजिए, हमें एक जनपद में स्थानांतरण दीजिए।’ प्रदेश के अलग-अलग जिलों में तैनात ये शिक्षक दंपती वर्षों से बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। कोई सहारनपुर में है तो उसकी पत्नी महराजगंज में, कोई मेरठ में तो पत्नी शाहजहांपुर में। विपुल त्यागी, संतोष त्यागी, अनुज मिश्रा ऐसे सैकड़ों नाम हैं जिनकी पारिवारिक जिंदगी बिखरी हुई है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें एक ही जिले में तैनाती नहीं मिली।

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छुट्टियां खत्म हो चुकी हैं। सीएल, ईएल, मेडिकल सभी छुट्टियां इस्तेमाल हो चुकी हैं। अब इन शिक्षकों के पास एक ही उम्मीद बची है अंतरजनपदीय स्थानांतरण।
इसकी आस लेकर छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लिए ये शिक्षक लखनऊ महानिदेशक कार्यालय के बाहर धरने पर बैठे, ताकि सरकार उनकी पुकार सुने। धरना स्थल पर एक महिला शिक्षिका की आंखें भर आईं। बोलीं, बच्चे पूछते हैं कि मम्मी-पापा कब साथ रहेंगे? हम बच्चों को क्या जवाब दें? कभी-कभी इतना तनाव हो जाता है कि पढ़ाने का मन ही नहीं करता। धरना दे रहे शिक्षकों में से एक ने कहा, बच्चे संभालें या स्कूल चलाएं? माता-पिता की तबीयत खराब हो तो हम पहुंच भी नहीं सकते। हम सरकार से कुछ मांग नहीं रहे, बस एक मानवीय व्यवस्था की गुहार लगा रहे हैं। धरना दे रहे शिक्षकों की मांग थी कि इस ग्रीष्मकालीन अवकाश में सरकार विशेष विचार करे और पति-पत्नी शिक्षकों को बिना शर्त अंतरजनपदीय तबादले की सुविधा दे।