प्रयागराज, प्रदेश के 4512 सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों और 2460 राजकीय विद्यालयों में पढ़ने वाले कक्षा नौ से 12 तक के विद्यार्थियों को अब शिक्षक न कहने की कला भी सिखाएंगे। मनोविज्ञानशाला एवं निर्देशन विभाग के विशेषज्ञों ने ‘विद्यार्थियों में संचार कौशल संवर्द्धन’ के लिए शिक्षक गाइड तैयार की है और चरणबद्ध तरीके से शिक्षकों का प्रशिक्षण पूरा भी हो चुका है। अब नए सत्र में ये शिक्षक बच्चों को संचार कौशल की बारीकियां सिखाने के साथ ही बच्चों को कब और कहां न कहना है, इसकी जानकारी भी देंगे।

मनोविज्ञानशाला की निदेशक ऊषा चन्द्रा ने बताया कि बच्चों में संचार कौशल संवर्द्धन के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया है। स्पष्टता की कमी, खराब श्रवण कौशल, सांस्कृतिक एवं भाषाई अवरोध, सूचना अवरोध, प्रतिपुष्टि की कमी आदि के कारण विद्यार्थी अपनी बातों, विचारों को सभी के समक्ष प्रभावी रूप से व्यक्त करने में सक्षम नहीं होते हैं जिसके लिए आवश्यक है कि उन्हें संचार में कौशलयुक्त बनाया जाए।
● नए सत्र में शिक्षक बच्चों को सिखाएंगे कब न कहना जरूरी
● कैसे करें अभिवादन, स्वयं और दूसरों का कैसे दें परिचय
कब नहीं कहना जरूरी
● यदि आप असहज महसूस करते हैं।
● आप दोषी या बाध्य महसूस करते हैं।
● जब आप पर अधिक बोझ हो।
● यदि अनुरोध आपकी व्यक्तिगत सीमाओं को पार करता है।
● यदि आप किसी और को खुश करने के लिए ही हां कह रहे हैं।
नहीं कहना कैसे सीखें
● न कहने के लिए तार्किक कारण बताएं।
● स्पष्ट रहें।
● संक्षेप में कारण बताएं।
● आभार व्यक्त करें।
● कोई विकल्प दीजिए।
● अपने उत्तर पर अड़े रहें।
● अपने अनुरोध के नकारात्मक प्रभाव की व्याख्या करें।
नहीं कहना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे विद्यार्थियों के सर्वोत्तम हितों की रक्षा होती है। मानसिक स्पष्टता बनाए रखने के लिए विद्यार्थियों को उन कार्यों को करने से मना करना चाहिए जिन्हें वह नहीं कर सकते।
– ऊषा चन्द्रा, निदेशक मनोविज्ञानशाला