लखनऊ: शिक्षा विभाग में अहम पदों पर अक्सर दूसरे बाबुओं के भरोसे चलते हैं। यहां तक कि डायरेक्टर और सचिव जैसे शीर्ष पद भी प्रभारी अफसरों के भरोसे हैं। शासन स्तर से नियमित अधिकारियों के समय पर तबादले न होने के कारण यह पद स्थायी नहीं हो पा रहे हैं।
शिक्षा विभाग में डायरेक्टर के कई प्रमुख पद हैं, जो प्रभारी अफसरों के जिम्मे हैं। इनमें माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव, जो विशेष सचिव माध्यमिक शिक्षा, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) के निदेशक हैं। बेसिक शिक्षा निदेशक महेंद्र सिंह भी समग्र शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना निदेशक हैं। वहीं, अपर शिक्षा निदेशक (बेसिक) अनिल कुमार भी समग्र शिक्षा अभियान के संयुक्त निदेशक हैं। माध्यमिक शिक्षा विभाग में संयुक्त शिक्षा निदेशक (विकास) प्रदीप कुमार भी अपर शिक्षा निदेशक माध्यमिक के कार्यभार संभाल रहे हैं। वहीं, सुरेंद्र तिवारी अपर शिक्षा निदेशक (प्रशिक्षण) एवं राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान के निदेशक का कार्यभार भी देख रहे हैं।

इसी तरह, माध्यमिक शिक्षा परिषद की सचिव नीना श्रीवास्तव भी अपर निदेशक माध्यमिक हैं। उनके पास सचिव, परीक्षा नियामक प्राधिकारी के साथ ही रजिस्ट्रार, विभागीय परीक्षाएं और अनुसचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद (अनुशासन) के अलावा उप सचिव माध्यमिक शिक्षा संस्थान के निदेशक का काम भी देख रही हैं।
क्यों आई यह नौबत?
दरअसल, निदेशकों के लिए जरूरी है कि अपर शिक्षा निदेशक पद पर तीन साल का अनुभव हो। इसी तरह अपर निदेशक बनने के लिए जरूरी है कि संयुक्त शिक्षा निदेशक के पद पर पांच साल का अनुभव हो। दिक्कत यह है कि अभी जो संयुक्त शिक्षा निदेशक और अपर शिक्षा निदेशक के पद पर हैं, उनका पांच साल और तीन साल का अनुभव पूरा नहीं हुआ है। ऐसे में वे निदेशक के लिए अर्ह नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि निचले स्तर पर समय से प्रमोशन नहीं हुए। काफी लेटलतीफी प्रमोशन होने के कारण अब जो अधिकारी अपर निदेशक और संयुक्त निदेशक के पद पर पहुंचे हैं, वे निदेशक की अर्हता नहीं रखते। लेटलतीफी का फायदा उठाकर कई जूनियर को निदेशक और अपर निदेशक का चार्ज दे दिया गया है। अपनी पहुंच से जूनियर अधिकारियों ने कम समय में ही वरिष्ठ पदों पर दस्तक दे दी है।