उत्तर प्रदेश का बेसिक शिक्षा विभाग और लैंगिक भेदभाव*
वैसे तो बीटीसी, बीएड, सीटीईटी और टीईटी की परीक्षाओं में हर जगह लैंगिक आधार पर भेदभाव न करने की बात की जाती है लेकिन बेसिक शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश में जमकर लैंगिक भेदभाव होता है । ये भेदभाव कोई और नहीं, बल्कि विभागीय अधिकारी ही करते हैं ।
जानिए कैसे :-
नियुक्ति के दौरान – महिला शिक्षिका को अपनी मर्जी से स्कूल चुनने का मौका मिलेगा, जबकि पुरुष शिक्षक को रोस्टर विधि से स्कूल आवंटन होगा ।
ट्रांसफर के दौरान – महिला शिक्षिका को स्कूल चुनने का मौका दिया गया था, फिर ट्रांसफर में भी महिला शिक्षिका को वरीयता दी जाएगी ।
महिलाओं का ट्रांसफर 2 साल और पुरुषों का ट्रांसफर 5 साल पर होगा ।
ट्रांसफर के दौरान भी महिला को अधिक भारांक सिर्फ इसीलिए दिया जाएगा क्योंकि वो स्त्री है । राष्ट्रपति पुरस्कार पाने वाले को 5 अंक का भारांक,
राज्यपाल पुरस्कार पाने वाले को 3 अंक वेटेज, मतलब बेसिक में महिला (10 अंक भारांक) होना भर ही इन पुरस्कारों से 2/3 गुना अधिक सम्मान का विषय है । बेसिक शिक्षा विभाग के नियमानुसार पति/पत्नी जॉब के वेटेज का भी एकतरफा 80% लाभ भी महिलाओं को ही मिल रहा है, क्योंकि एक मास्टर बेरोजगार महिला से तो अक्सर ही शादी कर लेता है पर कोई मास्टरनी किसी बेरोजगार से शादी करे, ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं । अब जिस पुरुष शिक्षक ने बेरोजगार लड़की से शादी कर ली, वो विभागीय अधिकारियों की नजर में अपराधी हो गया, उसका ट्रांसफर नहीं होगा । पति/पत्नी वेटेज नहीं होना चाहिए था क्योंकि इस वजह से पुरुष शिक्षकों का ट्रांसफर होना लगभग असंभव हो गया है ।
अतिरिक्त 4 छुट्टियां – महिला शिक्षिका को 4 अतिरिक्त छुट्टियां भी मिल जाती हैं । ललई छठ, करवा चौथ, हरितालिका तीज और जीवित्पुत्रिका । ट्रांसफर और नियुक्ति में पुरुषों के साथ भेदभाव करने वाला विभाग भूल जाता है कि पुरुष शिक्षक की भी माँ है, पत्नी है, बच्चे हैं । विभाग भूल जाता है कि करवा चौथ के दिन दूसरे जिले में नियुक्त शिक्षक को भी अपने घर पहुंचकर अपनी पत्नी का व्रत तुड़वाना है । विभाग भूल जाता है कि घर के नजदीक पोस्टिंग का अधिकार पुरुष को भी मिलना चाहिए ।
परिवार सर्वेक्षण, बाल गणना, परीक्षा ड्यूटी व अन्य सर्वे – सैलरी में चाहिए बराबरी, काम कम करेगी महिला शिक्षिका । मैम धूप में जाकर सर्वेक्षण आदि का काम नहीं कर पाएंगी । लगभग 80% महिला शिक्षिकाओं का ये हाल है । बीआरसी वाले ही ठीक ठीक बता पाएंगे कि परीक्षाओं में महिलाओं की ड्यूटी लगाने में बराबरी क्यों नहीं होती ? चुनाव में पीठासीन अधिकारी महिलाएं क्यों नहीं बन सकती ? जबकि वो किसी से कम तो नहीं हैं, सैलरी तो पुरुष जितनी ही मिल रही है ।
स्कूल के अन्य काम – बार-बार बीआरसी दौड़ने से लेकर विद्यालय में तरह-तरह के मैनेजमेंट का काम पुरुष शिक्षक करेगा लेकिन बात होगी बराबरी के अधिकार की । सबको पता है कि एक महिला शिक्षिका के मुकाबले एक पुरुष शिक्षक अधिक काम करता है । एमडीएम के दाल चावल और सब्जी लाने से लेकर बीआरसी से किताब लाने तक, चपरासी बनकर रह गया है पुरुष शिक्षक । मैडम काम कम करेंगी लेकिन सैलरी बराबर चाहिए । पापा की परियाँ ज्यादातर मौकों पर सीधा जवाब देती है कि हमसे नहीं होगा, हम नहीं करेंगे । पुरुष शिक्षक ये टैंट्रम भी झेलता है ।
एकल विद्यालय संचालन – अधिकतर विद्यालय सिर्फ पुरुषों के भरोसे चल रहे हैं । हर बार एकल विद्यालय पुरुष शिक्षक ही क्यों संभाले ? विभाग को कभी महिलाओं को भी ये मौका देना चाहिए । आखिरकार वो स्त्री है, कुछ भी कर सकती है तो एकल विद्यालय संचालन क्यों नहीं कर सकती ?
यहाँ सिर्फ बात होती है बराबरी की । सिर्फ बात । कम से कम पोस्टिंग और ट्रांसफर में तो बराबरी का अधिकार मिलना ही चाहिए । *साथ ही यह भी काबिल ए गौर हो की असाध्य रोगीधारक होने का भारांक शिक्षक के माता-पिता क्यों नहीं शामिल किए गए ,,यदि कोई पुरुष शिक्षक या शिक्षिका अपने मां-बाप की इकलौती संतान है तो क्या वह नौकरी के लिए अपने मां बाप को मरता हुआ छोड़ देगा इस आधार को भी पॉलिसी में छीन लिया गया है।*
इस देश को जरूरत है - *राष्ट्रीय पुरुष आयोग* की ।
BasicTransferPolicy
RipGenderEquality👎
पुरुष शिक्षक ज्यादा से ज्यादा शेयर करें, ताकि विभागीय अधिकारियों को पता चल सके कि पुरुष होना कोई अपराध नहीं है ।