लखनऊ। यूपी बोर्ड का सत्र शुरू हुए 114 दिन गुजर चुके हैं। मगर जिले में कक्षा नौ से 12 तक के करीब दो लाख छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए किताबें नहीं मिल पा रही हैं। प्रदेश में यह संख्या एक करोड़ से अधिक है।
अफसर स्कूलों का निरीक्षण कर रहे हैं और प्रधानाचार्यों, शिक्षकों को छात्र संख्या बढ़ाने और टाइम टेबल के हिसाब से पढ़ाने का दबाव बना रहे हैं। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने जून में एनसीईआरटी की किताबों की टेंडर प्रकिया शुरू की थी, पर अभी तक किताबें बाजार में नहीं पहुंची हैं। शिक्षकों के सामने असमंजस की स्थिति है कि वह बच्चों को कौन सी किताबें खरीदने का सुझाव दें? फिलहाल पुरानी किताबों से पढ़ा रहे हैं। राजकीय, एडेड स्कूलों के प्रधानाचार्यों का कहना है कि किताबें बाजार में नहीं मिल रही हैं। अकेले में लखनऊ के राजकीय व वित्तविहीन स्कूलों में करीब दो लाख पंजीकृत हैं। अधिकारियों ने बीते साल निजी प्रकाशकों की किताबें बच्चों को खरीदने के लिए किया था। यूपी बोर्ड द्वारा नामित किताबों से ही पढ़ाने के निर्देश थे, लेकिन बाजार में पुरानी किताबें भी नहीं हैं। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने 12 जून को किताबों के लिए प्रकाशकों का टेंडर निकाला था। जिसमें 36 विषयों की 70 किताबें एनसीईआरटी और हिन्दी, संस्कृत और उर्दू की 12 किताबें नॉन एनसीईआरटी की शामिल हैं।
हर साल किताबें बच्चों को देर से मिलती हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। सरकार को चाहिए कि सत्र शुरू होने से पहले ही किताबें उपलब्ध करानी चाहिए। ताकि बच्चे किताबें खरीदकर पढ़ाई शुरू सकें।- डॉ. आरपी मिश्रा, उप्र. माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रादेशिक उपाध्यक्ष
माध्यमिक स्कूलों में नियमित कक्षाएं संचालित की जा रही हैं। अभी तक माध्यमिक शिक्षा परिषद की ओर से किताबों को लेकर कोई दिशा निर्देश नहीं मिले हैं। जैसे ही कोई आदेश मिलेगा। उसका पालन कराया जाएगा।
- राकेश पाण्डेय, डीआईओएस
● बोर्ड ने 12 जून को निकाला था प्रकाशकों के लिए टेंडर
सचिव ने तीन प्रकाशकों के नाम तय किये
माध्यमिक शिक्षा परिषद के सचिव दिब्यकांत शुक्ला ने कक्षा नौ से 12 की किताबों के प्रकाशन एवं वितरण के लिए तीन प्रकाशकों के नाम तय किये हैं। छह जुलाई इन प्रकाशकों के नाम व किताबों की सूची व रेट जारी किये हैं। इनमें राजीव प्रकाशन प्रयागराज, जनरल ऑफसेट प्रिटिंग प्रेस प्रा. लि. नैनी प्रयागराज और डायनामिक टेक्स्टबुक्स प्रिंटर्स प्रा. लि. झांसी शामिल हैं। इन्हें किताबों की छपाई से लेकर वितरण की जिम्मेदारी दी गई है। किताबों की कीमतें निजी प्रकाशकों की तुलना में 10 गुना कम है।