प्रयागराज,
सबसे पहले कौड़िहार विकासखंड के उच्च प्राथमिक विद्यालय कंजिया की विज्ञान शिक्षिका वंदना ने माचिस के खाली डिब्बी का प्रयोग कर बच्चों की उपस्थिति के लिए बायोमेट्रिक मॉडल बनाया। उन्होंने एक बोर्ड पर बच्चों की संख्या के अनुसार डिब्बियां लगा दीं और अंदर उपस्थिति के लिए खोखे को हरा और अनुपस्थिति के लिए लाल रंग से रंग दिया।
स्कूल आने पर बच्चे डिब्बी के हरे रंग की ओर खोखे को खिसका देते हैं। इस खिलौने का प्रयोग करने की बच्चों में होड़ लगने लगी। जिसका परिणाम यह हुआ कि स्कूल में जहां 55 से 60 बच्चे आते थे वहीं उनकी उपस्थिति बढ़कर 65 से 70 प्रतिशत तक हो गई। एकेडमिक रिसोर्स पर्सन (एआरपी) जय सिंह और प्रभा शंकर शर्मा ने सपोर्टिव सुपरविजन के दौरान कक्षा सात में लगी डिवाइस को देखा तो अधिकारियों से चर्चा की।
बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण कुमार तिवारी ने कौड़िहार के सभी 219 विद्यालयों में इस नवाचार को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू कर दिया। इससे प्रभावित होकर कौड़िहार के अलावा दूसरे स्कूलों ने भी अलग-अलग तरीके से मैनुअल अटेंडेंस मॉडल बनाया है। जैसे आइसक्रीम की डंडी पर बच्चों का नाम रोल नंबर लिखकर और बच्चों की फोटोग्राफ लगाकर हाजिरी लगाने लगे। अधिकांश स्कूलों में कक्षा दो से आठ तक के बच्चों के लिए यह व्यवस्था लागू की गई है क्योंकि कक्षा एक के बच्चे बहुत छोटे होते हैं।