राज्य ब्यूरो, लखनऊ : अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों के प्रबंध तंत्र ने वर्ष 2000 के बाद भी गलत ढंग से बड़ी संख्या में तदर्थ शिक्षकों को रख लिया, जो वर्ष 2004 तक जारी रहा। ऐसे में नियमित पदों के सापेक्ष कार्य कर रहे इन शिक्षकों की कुल संख्या बढ़ती गई और यह दो हजार के करीब पहुंच गई। 20 से 25 वर्षों से सेवाएं दे रहे ये शिक्षक लगातार विनियमितीकरण की मांग करते रहे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई ।
गड़बड़ी माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी की और कई जिलों में तदर्थ शिक्षकों को विनियमित कर दिया। वर्ष 2020 में तदर्थ शिक्षक संजय सिंह ने विनियमितीकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में वाद दायर किया। 26 अगस्त 2020 और सात दिसंबर 2021 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में तदर्थवाद को खत्म करने का निर्णय सुनाया गया और शिक्षकों को कोई
राहत नहीं दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों के खाली पदों पर भर्ती में इन्हें भारांक देने का निर्देश दिए। वर्ष 2021 में हुई भर्ती में इन्हें भारांक दिया गया, लेकिन सिर्फ 12 शिक्षक ही इसका लाभ उठा सके। बीते वर्षों में विनियमित किए गए शिक्षकों के मामले में विभाग ने आधिकारियों पर कार्रवाई भी शुरू कर दी। पिछले वर्ष अयोध्या के संयुक्त शिक्षा निदेशक अरविंद पांडेय को इस आरोप में निलंबित भी कर दिया गया। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने जून 2022 से तदर्थ शिक्षकों का वेतन पूरी तरह रोक दिया । माध्यमिक तदर्थ शिक्षक संघर्ष समिति के संयोजक राजमणि ने बताया कि इसे लेकर बीते सितंबर-अक्टूबर में माध्यमिक शिक्षा निदेशालय पर शिक्षकों ने याचना कार्यक्रम के माध्यम से 53 दिन आंदोलन चलाया, तब उन्हें आश्वासन दिया गया था कि इनके हित में कोई निर्णय होगा ।