लखनऊ। उत्तर प्रदेश का अल्पसंख्यक कल्याण विभाग यूपी मदरसा बोर्ड द्वारा लगातार गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को मान्यता देने संबंधी उठाई जा रही मांग से सहमत नहीं है। विभाग के अफसरों का कहना है कि जब राज्य के मदरसों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की तादाद लगातार हर साल घटती जा रही है, मदरसे बंद होते जा रहे हैं तो ऐसे में नए मदरसों को मान्यता देने का क्या औचित्य है?
पिछले साल प्रदेश सरकार ने प्रदेश में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की जांच के लिए एक सर्वे करवाया था, जिसमें करीब साढ़े आठ हजार ऐसे मदरसे सामने आए, जिनके पास सरकारी मान्यता नहीं है। यूपी मदरसा बोर्ड मदरसों को मान्यता दिये जाने की मांग लगातार उठा रहा है। प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने शिक्षण संस्थाओं में पंजीकृत छात्र-छात्राओं के ब्यौरे से संबंधित पोर्टल यूडीआईएसई प्लस पर उपलब्ध आंकड़ों के हवाले से तर्क दिया कि वर्ष 2021-22 में प्रदेश में कुल 15,105 मान्यता प्राप्त मदरसे थे जो कि वर्ष 2022-23 में घटकर 13490 रह गये। मदरसों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की तादाद सात लाख 59 हजार 168 घटी।
मदरसों की मान्यता पर एक राय नहीं
क्या सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी नहीं घटे? मदरसों में पढ़ने वालों की तादाद घट रही है तो इसकी सज़ा उन्हें क्यों दी जा रही, जिन मदरसों के पास बरसों से मान्यता नहीं है।
-डा.इफ्तेखार अहमद जावेद, चेयरमैन, यूपी मदरसा बोर्ड
बोर्ड के चेयरमैन की मांग बेमानी है क्योंकि अभी राज्य के उन 560 मदरसों के पाठ्यक्रमों को ही मान्यता नहीं मिल सकी है। इस वजह से यहां की उपाधियां महत्वहीन हैं।
-़कमर अली सदस्य, यूपी मदरसा बोर्ड