कोरांव, प्रयागराज। रविवार की छुट्टी की शुरुआत सन 1890 ई0 में हुई थी। इसका मकसद सरकारी कार्यालयों में, स्कूलों, विद्यालयों में काम कर रहे लोगों को मानसिक रूप से विश्राम प्रदान था।… परिषदीय विदयालयों में काम कर रहे शिक्षकोंके सन्दर्भ में कहा जाए तो लगातार खत्म होती छुट्टियाँ और अब रविवार को भी काम के लिए बुलाया जाना दुर्भाग्य ही है। निष्ठा, प्रेरणा और अब निपुण भारत कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए शिक्षक जी जान से मेहनत कर रहे है। ‘निपुण भारत मिशन’ ने बेसिक के स्कूलों में बदला है पढ़ने-पढ़ाने का तरीका, शिक्षक नए-नए प्रयोग करके बच्चों को पढ़ा और सिखा रहे है, बच्चों में भी आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक बदलाव दिख रहे है।
बावजूद इसके वर्तमान में शिक्षक शिक्षण कार्य के अलावा मानसिक रूप से लगातार विभागीय काम के बोझ से दबा जा रहा है, चाहे चुनाव ड्यूटी हो, पल्स पोलियो दिवस हो, किसी की जयंती मनाने का हो, मेरी माटी मेरा देश, असेसमेंट हो, तमाम कार्य रविवार की छुट्टी के दिन भी कराए जाते है, जिसका परिणाम ये होता है कि शिक्षक मानसिक थकान के साथ-साथ शारिरिक रूप से भी तकलीफ में होता है, जिसका असर शिक्षण कार्य और शिक्षक के शारिरिक मानसिक स्तर पर देखा जा सकता है। सप्ताह में एक दिन की छुट्टी मिलती है, इस एक दिन में शिक्षक अपने घर परिवार बाल बच्चे, रिस्तेदार नेह निमन्त्रण, घर की साफ सफाई आदि करने होते है, परन्तु छुट्टी के दिन भी विभाग द्वारा इतने काम दे दिए जाते है कि शिक्षक के शिक्षण कार्य के साथ साथ स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है,, इस समय प्रतिमाह मंगलवार को विद्यालय समय के बाद 3 से 5 बजे तक शिक्षक संकुल की बैठक आहूत की जाती है, क्या ये तर्क संगत है, सायद सबका जवाब एक सुर में नही, शिक्षक संकुल की बैठक ही कराना है तो स्कूल टाइम में 1 से 3 कराया जा सकता है। यू डायस का काम हो, एमडीएम का काम हो, फल सब्जी लाने का काम हो या गेहूं चावल लाने का काम शिक्षक लगातार करते नजर आते है। नीति नियंताओं और विभागीय अधिकारियों से अनुरोध है कि रविवार के दिन शिक्षको को काम मे न लगाया जाए।