शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने के लिए बनाएं कमेटी👉 हाईकोर्ट का आदेश, कहा- इनका मानदेय जीवनयापन के लिए नाकाफी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने के लिए चार हफ्ते में उच्चस्तरीय कमेटी बनाने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है। अदालत ने उनका मानदेय जीवनयापन के लिए नाकाफी माना है। कोर्ट ने उम्मीद जताई है कि कमेटी अगले तीन माह में सहानुभूतिपूर्वक विचार कर नियमानुसार शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने पर उचित निर्णय लेगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जितेंद्र कुमार भारती सहित 10 याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। कोर्ट ने समान कार्य समान वेतन की मांग मानने से इन्कार कर दिया है, किन्तु कहा है कि इतना मानदेय दिया जाना चाहिए जिससे महंगाई को देखते हुए गरिमामय जीवन यापन हो सके। याची का कहना था कि शिक्षामित्र विभिन्न स्कूलों में पिछले 18 सालों से सहायक अध्यापक की तरह पढ़ा रहे हैं और
उन्हें काफी कम मानदेय दस हजार रुपये दिया जा रहा है। इसलिए समान कार्य समान वेतन के स्थापित विधि सिद्धांत के तहत नियमित सहायक अध्यापक को मिल रहा न्यूनतम वेतनमान दिया जाए। अथवा मानदेय का पुनरीक्षण कर बढ़ाया जाए।
सरकार का तर्क : सरकार की तरफ से कहा गया कि याचीगण संविदा पर कार्यरत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे लोगों को समान कार्य समान वेतन देने से अपने फैसलों में इन्कार किया है।
कोर्ट ने कहा : शिक्षामित्र संविदा पर कार्यरत हैं। कोर्ट यह तय नहीं कर सकती कि उन्हें समान कार्य समान वेतन का लाभ दिया जाए। यह तय करना विशेषज्ञ प्राधिकारी का काम है। इसलिए याचीगण सरकार से संपर्क करें।
प्रयागराज, । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि शिक्षामित्रों को सम्मानजनक और आजीविका के लिए आवश्यक मानदेय का भुगतान करे। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा समय में शिक्षामित्रों का मानदेय बहुत कम है इसलिए सरकार एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित कर मानदेय वृद्धि पर निर्णय ले। हालांकि कोर्ट ने शिक्षामित्रों द्वारा समान कार्य-समान वेतन के सिद्धांत पर सहायक अध्यापकों के बराबर वेतन देने की मांग को अस्वीकार कर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय किसी विशेषज्ञ समिति द्वारा लिया जाना चाहिए इसलिए याची राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी से इस संबंध में संपर्क करें। सक्षम प्राधिकारी उनकी मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर निर्णय ले। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जितेंद्र कुमार भारतीय और दर्जनों शिक्षामित्रों की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
याचियों का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सत्येंद्र चंद्र त्रिपाठी और अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी का कहना था कि वर्ष 1998 के शासनादेश के तहत प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षामित्रों की नियुक्ति की गई। यह नियुक्ति एक वर्ष की अवधि के लिए संविदा के आधार पर की गई थी, जिसे प्रत्येक वर्ष रिन्यू किया जाता है। तब से लगभग 18 वर्षों से शिक्षामित्र नियमित रूप से नियुक्त सहायक अध्यापकों की तरह ही काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें काफी कम मानदेय दिया जाता है। अधिवक्ताद्वय ने समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत पर शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापकों के समान वेतन दिए जाने या कम से कम न्यूनतम वेतनमान दिए जाने की मांग की