गैरलाभकारी संस्था प्रथम फाउंडेशन द्वारा 26 राज्यों में 28 जिलों के 34,745 किशोरों से बातचीत पर आधारित ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (रूरल), 2023- बियोंड बेसिक्स’, दरअसल ग्रामीण भारत में 14-18 के किशोरों के शैक्षिक स्तर की पड़ताल है, जो परेशान करती है, तो कुछ मामलों में आश्वस्त भी करती है। सर्वेक्षण के लिए इसमें देश भर के प्रत्येक राज्य के एक- एक ग्रामीण जिले को, जबकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के दो-दो ग्रामीण जिलों को चुना गया था। पता चलता है कि 25 फीसदी किशोर अपनी क्षेत्रीय भाषा में दूसरी कक्षा का पाठ नहीं पढ़ पाते, जबकि 56.7 फीसदी को गणित में भाग करने में परेशानी आई ! ऐसे ही, करीब 57.3 फीसदी किशोर अंग्रेजी में वाक्य पढ़ सकते हैं, और इनमें से तीन चौथाई (73.4 फीसदी) इसका अर्थ बता सकते हैं।
जाहिर है, यह हताश करने वाली स्थिति है। सर्वे में शामिल 43.7
फीसदी किशोरों व 19.8 प्रतिशत किशोरियों के पास खुद का स्मार्टफोन है, लेकिन 9.9 फीसदी किशोरों और 8.3 प्रतिशत किशोरियों के पास ही कंप्यूटर लैपटॉप है। यह भी कोई अच्छी तस्वीर
पेश नहीं करता। हालांकि कुछ तथ्य स्थिति बेहतर होने की बात कहते हैं। जैसे, उम्र के साथ नामांकन प्रतिशत बढ़ा है और 86.8 फीसदी से अधिक किशोर शैक्षणिक संस्थानों में पंजीकृत हैं। नामांकन में लैंगिक खाई भी घट रही है। वर्ष 2017 में 11.9 फीसदी लड़कों के मुकाबले 16 फीसदी लड़कियां स्कूल/कॉलेज में नहीं थीं, यानी अंतर करीब चार फीसदी का था। लेकिन 2023 में यह अंतर घटकर महज 0.2 फीसदी रह गया। ग्रामीण किशोरियों की स्थिति अलबत्ता तुलनात्मक रूप से हताशाजनक है। मसलन, वे इंजीनियर और डॉक्टर बनना तो चाहती हैं, लेकिन मानविकी पढ़ने के लिए विवश हैं। डिजिटल कौशल में भी वे अपने समवयस्क किशोरों से पीछे हैं। सर्वे के अनुसार, मात्र 5.6 फीसदी किशोर व्यावसायिक प्रशिक्षण ले
रहे हैं, जबकि सरकार व्यावसायिक प्रशिक्षण को गांवों तक ले जाने की कई योजनाओं पर काम कर रही है। यह जरूरी भी है, क्योंकि चीन की आर्थिक प्रगति का एक बड़ा कारण युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराना रहा है। भारत को न सिर्फ दुनिया में सबसे बड़ी युवा आबादी का लाभ उठाना होगा, बल्कि जल्दी ही देश दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भी बनने जा रहा है, ऐसे में, ग्रामीण भारत इसमें पीछे न छूट जाए, इसके लिए तमाम प्रयास करने होंगे।
ग्रामीण भारत में किशोरों की शैक्षणिक स्थिति पर आई प्रथम की सालाना रिपोर्ट ध्यान देने की मांग करती है। भारत को न सिर्फ सबसे बड़ी युवा आबादी का लाभ उठाना होगा, बल्कि दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे देश को शिक्षा की ठोस बुनियाद तैयार करने के लिए भी तमाम प्रयास करने होंगे।