नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) की नई रिपोर्ट ‘इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024’ के अनुसार भारत में नियमित वेतन पाने वालों और स्व-रोजगार में लगे लोगों की वास्तविक कमाई में पिछले एक दशक के दौरान गिरावट आई है। सरकारी आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट में वास्तविक कमाई का आकलन महंगाई (मुद्रास्फीति) के आधार पर किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार साल दर साल नियमित कर्मचारियों के औसत मासिक वास्तविक कमाई में लगातार गिरावट आई है। 2012 में नियमित कर्मचारियों की औसत मासिक कमाई 12,100 रुपए थी। अब यह सालाना 1.2 फीसदी की गिरावट के साथ 2019 में घटकर 11,155 रुपए प्रतिमाह हो गई। 2022 में यह 0.7 फीसदी की गिरावट के साथ 10,925 रुपए मासिक रह गया.
कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा जो स्व रोजगार में लगा हुआ है उनकी कमाई भी कम हुई है। इनकी वास्तविक कमाई सालाना 0.8 फीसदी की गिरावट आई है। यह 2019 में करीब 7,017 रुपए प्रतिमाह से घटकर 2022 में 6,843 रुपए प्रतिमाह रह गई.
आकस्मिक श्रमिकों की कमाई में बढ़ोतरी दर्ज की गई
रिपोर्ट के अनुसार आकस्मिक श्रमिकों के मामले में उलट स्थिति सामने आई है। यानी पिछले दशक के दौरान उनकी वास्तविक कमाई में वृद्धि दर्ज की गई है। 2012 में इनकी औसत मासिक वास्तविक आय 3,701 रुपए थी जो सालाना 2.4 फीसदी की वृद्धि के साथ 2019 में बढ़कर 4,364 रुपए तथा 2022 में 4712 रुपए हो गई प्रतिमाह हो गई। नियमित कर्मचारियों और स्वरोजगार से संबद्ध लोगों की घटती कमाई के साथ ही आकस्मिक श्रमिकों की आय में हुई बढ़ोतरी का अर्थ यह है कि 2000 से 2022 के बीच पैदा हुई नौकरियों की गुणवत्ता पैमाने पर खरी नहीं थी।
खेती-बाड़ी से जुड़े मजदूरों को नहीं मिल रहा न्यूनतम मेहनताना
रिपोर्ट कहती है कि भारत में श्रमिकों को उनके कौशल के आधार पर न्यूनतम मेहनताना नहीं मिल है। श्रमिकों के एक बड़े हिस्से, विशेष रूप से आकस्मिक श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा। राष्ट्रीय स्तर पर विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में 40.8 फीसदी नियमित श्रमिकों और 51.9 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को उतना पारिश्रमिक नहीं मिल रहा जितना उस क्षेत्र में किसी अकुशल श्रमिक के लिए प्रतिदिन के लिहाज से कम से कम तय किया गया है। इसके अलावा रिपोर्ट में निर्माण क्षेत्र में लगे श्रमिकों की कमाई का भी उल्लेख किया गया है। इस क्षेत्र से जुड़े 39.3 फीसदी नियमित कर्मचारियों और 69.5 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को अकुशल श्रमिकों के लिए प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित औसत न्यूनतम वेतन नहीं मिल रहा है। यह आंकड़े 2022 के लिए किए गए पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे पर आधारित हैं।