प्रयागराज, संगमनगरी समेत प्रतापगढ़ और कौशाम्बी की चार संसदीय सीटों में से तीन पर भाजपा की हार के वैसे तो तमाम कारण खोजे जा रहे हैं। लेकिन, प्रतियोगी छात्रों के शहर में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बनकर उभरी थी। भर्ती आयोगों की नाकामी के कारण कई साल से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं हो रही, जिसके चलते हजारों बेरोजगार नौकरी मिलने के इंतजार में ही बूढ़े हो जा रहे हैं। इससे न सिर्फ युवा बल्कि उनके परिजन भी निराश हैं। यही कारण है कि सपा और कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान बेरोजगारी पर फोकस किया। अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने प्रयागराज की सभाओं में अग्निवीर योजना को डस्टबिन में फेंकने की बात की तो युवा पूरे उत्साह से तालियां बजाते नजर आए।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) में भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच तो 2017 में ही शुरू हुई लेकिन दोषियों को सजा न मिलना युवाओं के दिल में कसक छोड़ गया। यही नहीं, प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा में भर्ती के लिए उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग के गठन में सात साल लग गए। लेकिन, यह संस्था अब तक अस्तित्व में नहीं आ सकी है।
इसके चलते परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 2018 के बाद से भर्ती शुरू नहीं हो पाई है। जबकि सर्वाधिक भर्ती प्राथमिक में ही होती है। राजकीय स्कूलों में भी 2018 के बाद सहायक अध्यापक और 2020 से प्रवक्ता की भर्ती शुरू नहीं हुई। पिछले छह साल से समकक्षता ही तय नहीं हो सकी है। भर्ती आयोगों की सुस्त चाल युवाओं की उम्मीदों पर पानी फेरती दिखाई पड़ती है।
यही नहीं रोजगार पैदा करने के लिए औद्योगिकीकरण के प्रयास भी जमीनी हकीकत में नहीं बदल सके। इन्वेंस्टर्स समिट के नाम पर करोड़ों रुपये के निवेश की बातें तो हुई लेकिन उसके बावजूद दो जून की रोटी की तलाश में बेरोजगारों का दूसरे राज्यों में पलायन न रुकना औद्योगिकीकरण के प्रयासों पर सवाल उठाता नजर आता है।