प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि नियुक्ति के अनुमोदन लिए भेजे गए दस्तावेजों पर 30 दिनों तक बीएसए की खामोशी को यूपी बेसिक स्कूल नियम 10 के तहत उनकी स्वीकृति मानी जाएगी। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की एकल पीठ ने याची कविता सिंह की ओर से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए की।
बीएसए इलाहाबाद को न्यायालय ने प्रतिवादियों को एक महीने के भीतर अनुभव प्रमाण पत्र सत्यापित करने का निर्देश दिया। यह माना गया कि यदि दस्तावेज वास्तविक पाया जाता है, तो याचिकाकर्ता को प्रिंसिपल के पद पर बने रहने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस शर्त पर, न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को उसके वेतन का बकाया भुगतान किया जाएगा और उसे उसका मासिक वेतन भी मिलता
रहेगा। मामला प्रयागराज का है। याची
को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने 17 अक्टूबर 2015 को डॉ. अंबेडकर जूनियर हाई स्कूल, कौशाम्बी में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त किया था। उन्होंने उक्त पद पर 19 वर्षों तक काम किया।
2016 में, राम कली बालिका पूर्व माध्यमिक विद्यालय, इलाहाबाद ने कई पदों के लिए रिक्तियों का विज्ञापन जारी हुआ। जिसमे तहत याची ने प्रधानाध्यापक के पद के लिए आवेदन किया था। याची का चयन भी हो गया। उसने कार्यभार भी ग्रहण कर लिया। वेतन न मिलने पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की तो नियुक्ति प्राधिकारी ने याची के दस्तावेजों में अनुभव प्रमाणपत्र और बीएसए से अनुमोदन की गैर
मौजूदगी का हवाला देते हुए याची को नियुक्ति के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याची के वकील ने दलील दी कि याची ने 19 साल के अनुभव प्रमाण पत्र के साथ सभी आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए थे, जिसमें दिखाया गया था कि वह संस्था में सहायक शिक्षिका के रूप में काम करती थी।
यह प्रस्तुत किया गया कि याची के अनुभव प्रमाण पत्र में वर्तमान प्रबंधक, आकाश सिंह द्वारा छेड़छाड़ की गई थी, जिसके आधार पर विवादित आदेश पारित किया गया, जबकि नियुक्ति और दस्तावेजों के अनुमोदन के लिए बीएसए को भेजे गए पत्र पर बीएसए में अब तक कोई जवाब नही दिया। जबकि नियमानुसार अनुमोदन पर बीएसए को तीस दिन के भीतर जवान देना चाहिए