लखनऊ, उत्तर प्रदेश सरकार का मानना है कि राज्य के अनुदानित व मान्यता प्राप्त मदरसों में आधुनिक शिक्षा के गुणवत्तापूर्ण इंतजाम नहीं हैं। यही नहीं इन मदरसों से पढ़कर निकलने वाले युवाओं को रोजगार के समुचित अवसर भी नहीं मिल पाते क्योंकि यूपी मदरसा बोर्ड द्वारा संचालित कामिल व फाजिल यानी स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों को कानूनी तौर पर किसी विश्वविद्यालय या बोर्ड से मान्यता नहीं मिली है।
ये बातें उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाबी हलफनामे में कही गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड़ व दो अन्य जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई 16 जुलाई को करेगी। चार अप्रैल को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इन मदरसों में मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इन मदरसों को बंद कर इनमें पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को मुख्य धारा के मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में दाखिल करवाने के आदेश प्रदेश सरकार को दिए थे।
सरकार का तर्क है कि कामिल व फाजिल की मान्यता न होने के कारण मदरसों से पढ़कर निकलने वाले युवा उन नौकरियों व रोजगार में ही सक्षम पाए जाते हैं, जिनमें शैक्षिक योग्यता हाईस्कूल या इंटरमीडियट मानी जाती है। हाईकोर्ट के इस आदेश के अनुपालन के क्रम में तत्कालीन मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने कमेटी गठित करवाने के निर्देश जारी थे। मदरसों के प्रबंधकों ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट लखनऊ बेंच के आदेश को चुनौती दे दी गई।