शिक्षकों पर विश्वास करने से ही अच्छी पीढ़ी जन्म लेती है।
कोई शिक्षक देर से स्कूल नहीं पहुँचना चाहता है लेकिन कहीं सार्वजनिक परिवहन देर से चलना इसका कारण बनता है, कहीं रेल का बंद फाटक और कहीं घर से स्कूल के बीच की पचासों किमी की दूरी क्योंकि शिक्षकों के पास स्कूल के पास रहने के लिए न तो सरकारी आवास होते हैं, न दूरस्थ इलाकों में किराये पर घर उपलब्ध होते हैं। इससे अनावश्यक तनाव जन्म लेता है और मानसिक रूप से उलझा अध्यापक कभी जल्दबाज़ी में दुर्घटनाग्रस्त भी हो सकता है, जिसके अनेक उदाहरण मिलते हैं।
यदि किसी आकस्मिक कारणवश शिक्षकों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य या फिर घर, परिवार और समाजिक कारणों से दिन के बीच में स्कूल छोड़ना पड़े तो पूरे दिन के अनुपस्थित होने की रिपोर्ट भेज दी जाएगी। देर से स्कूल पहुँचने या जल्दी स्कूल से वापस जाने के अनेक कारण हो सकते हैं। यहाँ तक कि विद्युत आपूर्ति के बाधित होने या तकनीकी रूप से भी कभी इंटरनेट जैसी सेवाओं के सुचारू संचालन में समस्या आती है। इसीलिए ‘डिजिटल अटेंडेंस’ का विकल्प बिना व्यावहारिक समस्याओं के पुख़्ता समाधान के संभव नहीं है। सबसे पहले ये अन्य सभी विभागों के प्रशासनिक मुख्यालयों में लागू किया जाए जिससे उच्चस्थ अधिकारियों को इसके व्यावहारिक पक्ष और परेशानियों का अनुभव हो सके, फिर समस्या-समाधान के बाद ही इसे लागू करने के बारे में कालांतर में सोचा जाए।
सबसे बड़ी बात ये है कि इससे शिक्षकों को भावनात्मक ठेस पहुँचती है, जिससे उनके शिक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बोधपरक शिक्षण के लिए शिक्षकों का भावात्मक रूप से जुड़ना आवश्यक होता है। स्कूल में केवल निश्चित घंटे बिताना ही शिक्षण नहीं हो सकता।
हम इस मुद्दे पर शिक्षकों के साथ हैं!
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