● 19 साल बाद आश्रित नियुक्ति की मांग अस्वीकार करने पर हस्तक्षेप से इनकार
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि मृतक आश्रित कोटा लंबे समय बाद नियुक्ति का वैकल्पिक स्रोत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का कानून परिवार को तात्कालिक मदद देना है। समान स्थिति वाले अन्य कई की नियुक्ति के आधार पर नियुक्ति की मांग पर हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हवाले से कहा कि नकारात्मक समानता की मांग नहीं की जा सकती।
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कोर्ट ने रिक्ति न होने के आधार पर 19 साल बाद दाखिल आश्रित नियुक्ति की अर्जी अस्वीकार करने और वाद खारिज करने के केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने देवेंद्र कुमार की याचिका पर दिया है।
याचिका का प्रतिवाद केंद्र सरकार के अधिवक्ता ईशान शिशु व डायरेक्टर स्माल एवं मीडियम इंटरप्राइजेज मुंबई की ओर से अधिवक्ता राजीव शर्मा ने किया। याची का कहना था कि उसके पिता हरे कृष्ण चौधरी की सहायक विकास अधिकारी (बायो गैस) खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग में कार्यरत रहते हुए मृत्यु हो गई। तीन लड़कियों सहित याची उनके वारिस हैं। पिता के साथ मां की भी मृत्यु हो गई थी। एक बहन बालिग थी। याची सहित अन्य सभी वारिस नाबालिग थे।
बालिग बहन ने आश्रित नियुक्ति की अर्जी दी लेकिन पद रिक्त न होने के कारण उसकी नियुक्ति नहीं की हुई। याची बालिग हुआ तो उसने आश्रित कोटे में नियुक्ति की अर्जी दी, जिसे पद रिक्त न होने और अर्जी तीन साल बीतने के बाद दाखिल करने के आधार पर डायरेक्टर ने नियुक्ति देने से इनकार कर दिया। इस आदेश को कैट में चुनौती दी गई। कैट से वाद खारिज होने पर हाईकोर्ट में याचिका की गई। बहस की गई कि बहन को नियुक्ति न देने के आदेश को चुनौती नहीं दी गई। इसके बाद याची को नियुक्ति की अर्जी देने का अधिकार नहीं है। याची के अधिवक्ता ने कहा कि 2004 से 2011 तक कुछ लोगों को लंबी अवधि के बाद नियुक्ति दी गई है इसलिए याची की भी नियुक्ति की जाए। उसके साथ विभेद किया गया है। कोर्ट ने यह कहते हुए इस तथ्य को नहीं माना कि नकारात्मक समानता नहीं मांगी जा सकती। साथ ही कहा कि याची कैट के आदेश में ऐसी कोई अवैधानिकता बताने में सफल नहीं रहा, जिसपर हस्तक्षेप किया जा सके।