लखनऊ : साल 2024 बेसिक शिक्षा विभाग के लिए चुनौतियों से भरा रहा. बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में ऑनलाइन अटेंडेंस को लेकर शिक्षकों ने जबरदस्त विरोध किया. प्रदेश में 27,000 विद्यालयों के बंद करने के स्कूल महानिदेशक के आदेश के बाद प्रदेश में बवाल मच गया. इसके बाद विभाग को आनन-फानन में इस आदेश को वापस लेना पड़ा. वहीं 69,000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला दिया. कोर्ट ने इस भर्ती में आरक्षण की प्रक्रिया लागू करने में गड़बड़ी को स्वीकार किया.
साल 2024 में योगी सरकार ने कई उपलब्धियां हासिल कीं. वहीं प्रदेश सरकार का बेसिक शिक्षा विभाग चुनौतियों से जूझता रहा. सरकार ने 1 जुलाई से सभी बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में शिक्षकों के लिए ऑनलाइन अटेंडेंस की प्रक्रिया को अनिवार्य कर दिया था. विभाग के इस आदेश के बाद प्रदेश के सभी बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. प्रदेश के हजारों स्कूलों में शिक्षकों ने कार्य बहिष्कार के साथ धरना प्रदर्शन किया.
शिक्षकों ने 15 दिनों तक किया था प्रदर्शन : करीब 15 दिन चले लंबे गतिरोध के बाद सरकार ने अपने इस आदेश को स्थगित कर दिया और पुरानी व्यवस्था के तहत विद्यालयों में पढ़ाई और शिक्षकों की ऑनलाइन उपस्थिति को जारी रखने का आदेश दिया. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान प्रदेश के करीब 135000 से अधिक प्राथमिक विद्यालयों और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शैक्षिक कार्य पूरी तरह से प्रभावित रहा. ऑनलाइन अटेंडेंस को लागू करने के लिए सरकार की तरफ से सभी विद्यालयों में एक-एक टैबलेट तक उपलब्ध कराए गए थे. साथ ही ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करने के लिए सभी शिक्षकों को अनिवार्य रूप से ट्रेनिंग भी कराई गई थी. लागू होने के बाद शिक्षक विरोध में उतर आए.
हाईकोर्ट की डबल बेंच ने माना शिक्षक भर्ती में हुई थी गड़बड़ी : 13 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में 2 जजों की पीठ ने 69,000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण प्रक्रिया में अनियमितता को सही पाया. अभ्यर्थियों को मौका देने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के आदेश के बाद अभ्यर्थियों ने नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर बेसिक शिक्षा निदेशालय के बाहर धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया था. हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद वह शिक्षक भी प्रदर्शन के लिए सामने आ गए थे, जिन्हें इस भर्ती प्रक्रिया के तहत नौकरी मिली थी. लखनऊ के निशातगंज स्थित बेसिक शिक्षा निदेशालय के बाहर अभ्यर्थियों ने 15 दिनों तक प्रदर्शन किया.
सरकार ने अभ्यर्थियों के पक्ष में साफ कहा था कि वह इस मामले मामले में सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएंगे. मुख्यमंत्री ने अभ्यर्थियों के नाम अपने संबोधन में साफ तौर पर कहा था कि वह आरक्षण के पक्ष में हैं. इसके बाद भी इस मामले में सामान्य वर्ग के कुछ अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. वहां यह मामला लंबित पड़ा हुआ है.
27000 स्कूल बंद करने के प्रस्ताव पर छिड़ा सियासी घमासान : महानिदेशक स्कूल शिक्षा की ओर से प्रदेश के 27000 ऐसे विद्यालय जहां पर छात्र संख्या कम है, ऐसे स्कूलों को बंद करने के प्रस्ताव तैयार करने का मामला प्रकाश में आया था. यह सूचना जैसे ही विभाग के बाहर पहुंची प्रदेश में सियासी संग्राम छिड़ गया. विपक्ष ने इस पूरे मुद्दे को उठाकर हंगामा करना शुरू कर दिया था विपक्ष का कहना था कि सरकार गरीब, वंचित और आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को से दूर करना चाहती है.
आप ने दी थी नसीहत : मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम का सीधा-सीधा उल्लंघन है. इस मामले पर विवाद बढ़ता देख सरकार के कहने पर महानिदेशक स्कूल शिक्षा ने आनंद फानन में अगले ही इस आदेश का पूरी तरह से खंडन कर दिया. हालांकि इस खबर में उत्तर प्रदेश सरकार की दूसरे राज्यों में भी आलोचना की गई. दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को नसीहत दे डाली थी.