“जब शिक्षक का नैतिक बल जागेगा, तब सम्मान मांगना नहीं पड़ेगा”
शिक्षक का नैतिक बल: सम्मान की सच्ची पहचान
शिक्षक समाज का वह स्तंभ है जो राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करता है। शिक्षा केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह संस्कार, अनुशासन और आत्मसम्मान का पाठ भी पढ़ाती है। प्रस्तुत पंक्तियाँ इसी भाव को दर्शाती हैं:

“औचक निरीक्षण में कोई अधिकारी/नेता विद्यालय के दरवाज़े पर पहुंचे और आप अपनी कक्षा में हों। उनका अर्दली आपको आ कर बताए कि महोदय आए हैं!और आप कहें कि वह ससम्मान बैठें अभी कक्षावधि समाप्त करके मैं आता हूं।इतना नैतिक बल जिस दिन शिक्षक के अंदर आ गया, उस दिन गुरुओं का सम्मान मांगना नहीं पड़ेगा।”
ये पंक्तियाँ न केवल शिक्षक के आत्म-सम्मान को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि जब शिक्षक अपने कर्तव्य के प्रति पूर्ण निष्ठावान होंगे, तो उन्हें समाज में सम्मान की मांग नहीं करनी पड़ेगी; सम्मान स्वतः प्राप्त होगा।
कर्तव्यनिष्ठा: शिक्षक का प्रथम धर्म
शिक्षक का प्रमुख कर्तव्य अपने विद्यार्थियों को शिक्षित करना है। यदि कोई अधिकारी या नेता औचक निरीक्षण के लिए विद्यालय आता है और शिक्षक उस समय कक्षा में पढ़ा रहे होते हैं, तो क्या उन्हें तुरंत अपनी कक्षा छोड़कर अधिकारी के पास जाना चाहिए?
नहीं, क्योंकि शिक्षक के लिए उस समय सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने विद्यार्थियों को पढ़ाना है। यदि वह अधिकारी सम्माननीय है, तो उसे यह समझना चाहिए कि शिक्षा सर्वोपरि है। जब शिक्षक कहता है, “वह ससम्मान बैठें, अभी कक्षावधि समाप्त करके मैं आता हूं,” तो यह उसकी कर्तव्यनिष्ठा और आत्म-सम्मान को दर्शाता है।
आत्म-सम्मान और नैतिक बल: सम्मान की कुंजी
आज के समय में शिक्षक कई बार प्रशासनिक दबाव, राजनीतिक हस्तक्षेप और सामाजिक अपेक्षाओं से प्रभावित होते हैं। लेकिन जो शिक्षक अपने कर्तव्यों और नैतिकता पर अडिग रहता है, वही सच्चे सम्मान का पात्र बनता है।
आत्म-निर्भरता: यदि शिक्षक को बार-बार सम्मान की माँग करनी पड़े, तो इसका अर्थ है कि समाज में शिक्षकों की स्थिति कमजोर हो रही है। लेकिन जब शिक्षक स्वयं आत्म-निर्भर और आत्म-सम्मान से भरपूर होगा, तो उसे बाहरी सम्मान की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
समाज में उदाहरण: जब एक शिक्षक अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहता है और किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकता, तो वह अपने विद्यार्थियों और समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है।
सम्मान की परिभाषा: सम्मान केवल बाहरी दिखावे से नहीं मिलता; यह व्यक्ति के आचरण, विचारों और कर्तव्यपरायणता से अर्जित होता है। जिस दिन शिक्षक यह समझ जाएंगे कि उनका कार्य ही उनकी पहचान है, उस दिन से समाज भी उन्हें बिना किसी मांग के सम्मान देने लगेगा।
गुरु का स्थान समाज में सर्वोच्च
भारतीय संस्कृति में शिक्षक को “गुरु” कहा गया है, और गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊँचा माना जाता है। लेकिन यदि शिक्षक स्वयं अपने नैतिक बल को कमजोर कर लेंगे, तो वे इस सम्मान को खो देंगे। जिस दिन हर शिक्षक अपने अंदर इतना आत्मबल और कर्तव्यनिष्ठा ला देगा कि वह बिना किसी भय के अपने कार्य को प्राथमिकता दे, उस दिन समाज भी शिक्षकों को उसी सम्मान से देखेगा, जिसके वे हकदार हैं।
निष्कर्ष
शिक्षक का सम्मान केवल पद या डिग्री से नहीं मिलता, बल्कि उनके कर्तव्य और आचरण से निर्धारित होता है। यदि शिक्षक अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखें, तो उन्हें कभी सम्मान की माँग नहीं करनी पड़ेगी। वे स्वयं अपने आचरण से यह सिद्ध कर देंगे कि समाज में शिक्षक का स्थान अटल और सर्वोच्च है।
जिस दिन शिक्षक अपने नैतिक बल को पहचान लेंगे, उस दिन समाज स्वयं उन्हें सर्वोच्च सम्मान देगा।