चंदौली, कुशीनगर, संतकबीरनगर व भदोही के आदिवासियों को भी अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मिलेगा। इस प्रस्ताव को हाल में ही केंद्रीय कैबिनेट ने हरी झंडी दी है। यह प्रस्ताव संसद के अगले सत्र में पेश होगा। बुधवार को छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके ने दिल्ली में पीएम मोदी से मिलकर एक बार फिर इस मुद्दे को रखा। पूर्व में एसटी आयोग की उपाध्यक्ष रहते हुए उइके ने इन चार जिलों पर अपनी रिपोर्ट आयोग में पेश की थी।
उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने 1967 में अनुसूचित जनजातियों के अंतर्गत यूपी में कुल 5 जातियों- थारू, बुक्सा, भोटिया, जौनसारी व राजी को सूचीबद्ध किया। 2003 में इस श्रेणी में जिलों में निवास स्थान के आधार पर 10 जनजातियों को और शामिल किया गया। मसलन, गोंड जाति को महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर व सोनभद्र में ही एसटी का दर्जा मिला। वहीं, 90 के दशक में वाराणसी का काटकर बने चंदौली जिले के गोंड को अभी अनुसूचित जाति (एससी) का प्रमाणपत्र दिया जाता है।
इसी तरह सहरिया जाति पूरे बुंदेलखंड में फैली हुई है। 2003 के नोटिफिकेशन में सहरिया को सिर्फ ललितपुर जिले में एसटी का दर्जा मिला। जबकि बगल के जिले झांसी में सहरिया को एससी का प्रमाणपत्र दिया जाता है। यानी चंद कोस के फासले पर रहने वाले एक ही जाति के रिश्तेदारों की श्रेणी अलग-अलग हो जाती है। दोनों ही जगह रहने वाले इन लोगों के रीति रिवाज, संस्कृति, जीवन-पद्धति आदि में कोई अंतर नहीं है। यही सब एसटी का दर्जा पाने के आधार माने जाते हैं।