लखनऊ: उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के माध्यम से प्रदेश के सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में प्राचार्य के रिक्त पदों पर चयन विवादों में घिरता जा रहा है। चयन परिणाम घोषित होने के बाद भी हाईकोर्ट में पांच याचिकाएं दायर हो चुकी हैं, जबकि 27 याचिकाएं पहले से दाखिल हैं। इस बीच आयोग की एक नोटिस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इसकी शिकायत शासन से भी की गई है।
आयोग ने विज्ञापन संख्या 49 के तहत प्राचार्य के 263 पदों पर चयन का परिणाम गत 12 अगस्त को घोषित किया। साथ ही 66 अतिरिक्त चयनित प्राचार्यों की प्रतीक्षा सूची जारी की। प्रदेश के कुल 331 अशासकीय महाविद्यालयों में से 290 प्राचार्य का पद रिक्त है। यह चयन होने ने 263 महाविद्यालयों में नियमित प्राचार्य मिलने की उम्मीद तो जगी लेकिन चयन पर विवाद सामने आने से इस पर संशय के बादल भी मंडराने लगे हैं।
चयन प्रक्रिया से पहले ही 27 शिक्षकों ने अर्हता व्याख्या को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर दी थीं। हाइकोर्ट के आदेश से इन शिक्षकों ने इंटरव्यू भी दिए। आयोग ने 27 पदों को रोककर 263 पदों के लिए चयन सूची और 66 अतिरिक्त चयनित प्राचार्यों की प्रतीक्षा सूची जारी कर दी। यह चयन सूची प्रकाशित होने के बाद पांच और याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल की गई हैं, जिनमें चयनित प्राचार्यों की अर्हता पर सवाल खड़ा किया गया है। याचिकाओं में यूजीसी के तय मानकों की अनदेखी कर चयन किए जाने के आरोप लगाए गए हैं।
चयन के बाद मांगा आवश्यक अभिलेख
आयोग ने पहली सितंबर को प्राचार्य पद पर चयनित 27 अभ्यर्थियों और प्रतीक्षा सूची में शामिल छह अभ्यर्थियों से ऐसे अभिलेख मांगे, जो साक्षात्कार के समय ही उपलब्ध कराने होते हैं। इसमें अनापत्ति प्रमाणपत्र, आवेदन पत्र, पहचान पत्र, अभियोग का शपथ पत्र और अधिमानता सूची जैसे अभिलेख शामिल हैं। आयोग का कहना है कि इन अभ्यर्थियों ने साक्षात्कार के समय ये आवश्यक पत्रजात उपलब्ध नहीं कराए गए हैं, जिसकी वजह से आयोग द्वारा शिक्षा निदेशक उच्च शिक्षा को उनकी औपबंधिक संस्तुति की गई है।
वांछित पत्रजात आयोग के कार्यालय में उपलब्ध कराने के लिए 18 सितंबर तक का समय दिया गया है। परीक्षा में शामिल अभ्यर्थियों ने आयोग के इस फैसले पर आश्चर्य व्यक्त किया है। उनका कहना है कि साक्षात्कार के समय या पूर्व मांगे गए पत्रजात भर्ती का अंतिम परिणाम घोषित करने के तीन हफ्ते बाद क्यों मांगे गए?