इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 69000 सहायक अध्यापक भर्ती में शामिल ऐसे अभ्यर्थियों को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने का निर्देश दिया है जो बेसिक शिक्षा विभाग में ही पहले से सहायक अध्यापक पद पर कार्यरत हैं और 69000 अध्यापक भर्ती में भी चयनित हुए हैं। कोर्ट ने ऐसे अध्यापकों को अनापत्ति प्रमाणपत्र न दिए जाने संबंधी चार दिसंबर 2020 के शासनादेश के पैरा 5(1 ) को मनमाना, भेदभाव पूर्ण और क्षेत्राधिकार से बाहर दिया गया आदेश करार देते हुए रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि ऐसे सभी अभ्यर्थियों को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया जाए तथा उनको काउंसलिंग में शामिल किया जाए जो कि बेसिक शिक्षा विभाग में पहले से सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं और 69000 भर्ती में भी चयनित हुए हैं।
रोहित कुमार और 56 अन्य तथा अतुल मिश्रा सहित दज़ॱरनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने दिया। याचिका पर पक्ष रख रहे अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी का कहना था कि याची गण प्रदेश के विभिन्न जिलों में प्राथमिक परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक पद पर कार्यरत हैं।
प्रदेश सरकार ने एक दिसंबर 2019 को सहायक अध्यापक परीक्षा के लिए शासनादेश जारी कर आवेदन मांगे थे। याची गण ने भी इसके लिए आवेदन किया, क्योंकि शासनादेश में उनके आवेदन पर करने पर कहीं रोक नहीं थी। चयनित होने के बाद काउंसलिंग में शामिल होने के लिए संबंधित विभाग का अनापत्ति प्रमाण पत्र आवश्यक है।
वह अभ्यर्थी जो अन्य सरकारी विभागों में कार्यरत हैं उनको उनके विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिल गया। मगर याचीगण चूंकि बेसिक शिक्षा परिषद में ही सहायक अध्यापक पद पर कार्यरत हैं इसलिए उनको अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा है, जिसकी वजह से वह काउंसलिंग में शामिल नहीं हो पा रहे हैं।
कहा गया कि उक्त शासनादेश भेदभाव पूर्ण है और अनुच्छेद 14 वर्ष 16 का उल्लंघन करता है। शासनादेश के पैरा 5 (1 ) में कहा गया है कि जो अभ्यर्थी शिक्षा विभाग में पहले से कार्यरत हैं उसी विभाग में समान पद के लिए कार्यमुक्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि उनके पास अंतर्जनपदीय स्थानांतरण का विकल्प है।
अधिवक्ता का कहना था कि याची दोबारा सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में इसलिए बैठे ताकि उनके अंको में सुधार हो सके और मेरिट में ऊपर स्थान मिलने के कारण उनको उनकी पसंद का जिला मिल सके, जबकि प्रदेश सरकार की दलील थी कि याची गण समान पद पर पहले से ही कार्यरत हैं और उनके पास पसंद का जिला पाने के लिए अंतर्जनपदीय स्थानांतरण का विकल्प है। इसलिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करना उचित नहीं है।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि चार दिसंबर 2020 के शासनादेश का पैरा 5(1) मनमाना पूर्ण, अकारण और क्षेत्राधिकार से परे होने के कारण रद्द किया जाता है। कोर्ट ने याची गण व उन सभी अभ्यर्थियों को जिन्होने याचिका नहीं दायर की है मगर उक्त शासनादेश से प्रभावित है को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने और उनको काउंसलिंग में शामिल करने तथा नियमानुसार जिलों में नियुक्ति देने का निर्देश दिया है ।उक्त आदेश का पालन चार सप्ताह में करने के लिए कहा है।