प्रदेश में चल रहे कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों में लॉकडाउन के समय से खान अकादमी पर असाइनमेंट करने ऑन लाइन पढ़ने के लिए कार्यक्रम चलाया हा है। जिस पर पुस्तकों का ज्ञान जा रहा दिया जा रहा है। मालूम हो कि कस्तूरबा गांधी ऐसे स्कूल हैं जिनमे उन बच्चो का एडमिशन किया जाता हैं जो कभी स्कूल नहीं गए होते हैं अर्थात् शिक्षा के नाम पर उन्हें घरों में भी कुछ नहीं बताया जाता है क्योंकि विद्यालयों में बच्चे शिक्षा हेतु अधिकांशतः उस पिछड़े वर्ग से ही आते हैं जिनका शिक्षा से कोई लेना देना हीं होता है जिससे उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से में काफी समय लग जाता है।
ऐसे में यह ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों को समझ में नहीं आती है। आन लाइन पढ़ाई के लिए बच्चो को कंप्यूटर भी आना जरूरी है कंप्यूटर ज्ञान के अभाव में बच्चे अपनी यूजर आईडी और पासवर्ड नही डाल पाते हैं ऐसे में मैथ टीचर अपनी नौकरी बचाने के लिए खुद यूजर आईडी और पासवर्ड डाल कर वीडियो बच्चो को दिखाते हैं कंप्यूटर का ज्ञान अधिकांश बच्चों को नहीं है बहुत से विद्यालयों कंप्यूटर टीचर का ही अभाव है। जिसके चलते मैथ टीचरों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है चूंकि अधिकांश मैथ शिक्षको को भी कंप्यूटर का ज्ञान अत्याधिक नहीं है ऐसे में जहां कंप्यूटर शिक्षक का अभाव है वहां पर बच्चों व शिक्षकों को कार्य करने ज्यादा दिक्कत हो रही है।
लेकिन शासन का दबाव होने के कारण मैथ के टीचर मेंटली टॉवर हो रहे हैं। इस जद्दोजहद के बीच बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ना बहुत कठिन कार्य साबित हो रहा है। बच्चे इस ऑनलाइन शिक्षा से लाभान्वित नहीं हो पा रहे है बताते हैं कि इस ऑनलाइन शिक्षा से कहीं अधिक बच्चे क्लासरूम में सीख लेते थे शासन की नीतियों के आगे नतमस्तक टीचर्स भी अपनी नौकरी बचाने के लिए वीडियो चला देते है बच्चे उसे चुपचाप देख लेते हैं। टीचर की लाख कोशिशों के बावजूद भी अधिकांश बच्चे अपनी यूजर आईडी और पासवर्ड डालना तक नहीं सीख पा रहे है।
ऐसी स्थिति में टीचर परेशान है और बच्चे भी बच्चे इसलिए परेशान हैं कि कुछ सीख नही पा रहे हैं और टीचर इसलिए कि क्लासरूम का टाइम सब खान अकादमी पर काम करने और करवाने में चला जाता है। सवाल उठता है कि ऐसी आन लाइन एप्लीकेशन से पढ़ाई कराने का क्या फायदा है जो बच्चों को कुछ सीखने सिखाने में मदद करने के स्थान पर बाधा बन रही हो ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सरकार के कार्यक्रम बंदर दौड़ तक ही सीमित है जिसमें मूल उद्देश्य के लिए काम हो या ना हो लेकिन यह लगना चाहिए कि जनता के लिए सरकारी स्तर पर काफी तेजी के साथ कार्य किया जा रहा है। सरकार की तरफ से जनहित के कार्यों में कोई ढिलाई नहीं है अर्थात् सरकार द्वारा इतना कुछ करने के बाद अगर जनता का कोई भला नहीं हो रहा है तो इसमें सरकार क्या करे। या करे।