Home PRIMARY KA MASTER NEWS प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

by Manju Maurya

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) को प्रोन्नति में आरक्षण पर शुक्रवार को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण के लिए क्वांटीफेबल (परिमाण या मात्रा के) आंकड़े जुटाने में कैडर को एक यूनिट माना जाना चाहिए न कि संपूर्ण सेवा को। कोर्ट ने कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी है, साथ ही इसकी समय-समय पर समीक्षा भी होनी चाहिए। प्रोन्नति में आरक्षण के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के बारे में कोर्ट कोई मानक तय नहीं कर सकता।

आंकड़े एकत्र करना राज्य का दायित्व

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी के उचित प्रतिनिधित्व के बारे में आंकड़े एकत्र करना राज्य का दायित्व है। कोर्ट ने एससी-एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आकलन के मानक तय करना राज्य पर छोड़ा है। यह अहम फैसला शुक्रवार को जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने प्रोन्नति में आरक्षण के कानूनी मुद्दों पर सुनाया। कोर्ट ने इस मामले में गत 26 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखा था।

ऐसे होना चाहिए आंकड़ों का कलेक्‍शन

फैसले में कोर्ट ने कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण के मात्रात्मक आंकड़े (क्वांटीफेबल डाटा) एकत्र करने के लिए कैडर एक इकाई के तौर पर होना चाहिए। संग्रह पूरे वर्ग, वर्ग समूह के संबंध में नहीं हो सकता, लेकिन यह उस पद के ग्रेड, श्रेणी से संबंधित होना चाहिए जिस पर प्रोन्नति मांगी गई है।

कैडर की अहमियत भी बताई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैडर मात्रात्मक आंकड़े (क्वांटीफेबल डाटा) एकत्र करने की इकाई होना चाहिए। यदि डाटा का संग्रह पूरी सेवा के लिए किया जाएगा तो यह अर्थहीन होगा। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीके पवित्रा (द्वितीय) के फैसले में समूहों के आधार पर आंकड़ों के संग्रह को मंजूरी देना न कि कैडर के आधार पर, कोर्ट के एम. नागराज और जनरैल सिंह के फैसले में दी गई व्यवस्था के खिलाफ है।

आकलन राज्य पर छोड़ा

पीठ ने कहा कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व और पर्याप्तता के परीक्षण के बारे में जाने से जनरैल सिंह के फैसले में मना कर दिया गया था। पीठ ने कहा कि हम इसमें नहीं गए हैं। हमने प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखते हुए पद की पदोन्नति में एससी-एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का आकलन राज्य पर छोड़ दिया है।

समीक्षा की अवधि सरकार तय करे

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का निर्धारण करने के लिए और पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से डाटा के संबंध में समीक्षा की जानी चाहिए और समीक्षा की अवधि उचित होनी चाहिए। कोर्ट ने समीक्षा की अवधि निर्धारित करना सरकार पर छोड़ा है।

अवमानना याचिका भी लंबित

इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट मे लंबित हैं जिनमें कोर्ट से प्रोन्नति में आरक्षण के बारे में व्याप्त भ्रम दूर करने का आग्रह किया गया है। इसके अलावा केंद्र सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका भी लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को साफ किया कि वह किसी भी लंबित याचिका की मेरिट पर कोई विचार प्रकट नहीं कर रहा है।

इस फैसले के आधार पर होगी लंबित याचिकाओं पर सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले में तय की गई कानूनी व्यवस्था के आधार पर लंबित याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने लंबित याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 24 फरवरी की तारीख तय की है। याचिकाओं को मुद्दों के मुताबिक समूहों में बांटा गया है। केंद्र सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका भी लंबित है। 24 फरवरी को कोर्ट कुछ राज्यों और केंद्र की याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इसमें केंद्रीय गृह सचिव के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका पर भी सुनवाई होगी।

केंद्र एवं राज्यों ने की थी आधार तय करने की मांग

मामले पर पहले हुई सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने प्रोन्नति में आरक्षण की तरफदारी करते हुए कहा था कि 75 साल बाद भी हम एससी-एसटी को मेरिट में फारवर्ड क्लास के साथ नहीं ला सके। केंद्र और राज्यों ने कहा था कि एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए कोर्ट केंद्र और राज्यों के लिए निश्चित और निर्णायक आधार तय करे।

सरकार से पूछे थे कई सवाल

केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण दिए जाने के आंकड़े भी कोर्ट में पेश किए थे। कोर्ट ने आरक्षण की समीक्षा आदि को लेकर सरकार से कई सवाल भी पूछे थे। केंद्र और राज्य सरकारों ने प्रोन्नति में आरक्षण के बारे में 2006 के एम. नागराज फैसले में तय किए गए मानकों पर कहा था कि इस फैसले के बाद प्रोन्नति में आरक्षण को लेकर हाई कोर्ट की स्क्रूट¨नग इतनी सख्त हो गई है कि कोई भी राज्य प्रोन्नति में आरक्षण लागू नहीं कर पा रहा है।

तय की थी अधिकतम सीमा

सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में ही साफ कर दिया था कि वह एम. नागराज और जनरैल सिंह मामले में दिए गए फैसले को फिर से नहीं खोलेगा। एम. नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाने की अनिवार्यता बताई थी। साथ ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी। आंकड़े नहीं होने के आधार पर ही कई राज्यों के प्रोन्नति में आरक्षण के मामले हाई कोर्टो से खारिज हो गए जिसके बाद राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट में आई थीं। मध्य प्रदेश, बिहार महाराष्ट्र आदि राज्यों की अपीलें लंबित हैं।

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