परीक्षा में उच्चतम अंक लाना मेरिट की पहचान नहीं: कोर्ट
विश्वविद्यालयों ने मूल्यांकन का पैमाना इसीलिए बदला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक परीक्षा किसी व्यक्ति की प्रतिभा तय नहीं कर सकती, यही वजह है कि अब विश्वविद्यालयों ( दिल्ली विवि समेत) ने अंकों के आधार पर दाखिला देने के बजाए कई टेस्ट लेने अनिवार्य कर दिए हैं जैसे वस्तुनिष्ठ परीक्षा, ग्रुप डिस्कशन, पर्सनालिटी टेस्ट, इंटरव्यू, वायवा, लिखित परीक्षा और व्यक्तिगत प्रेजेंटेशन आदि। इसके पीछे सिद्धांत यही है कि कोई एक छात्र परीक्षा में सही परफार्म नहीं कर सका है लेकिन वह दूसरे टेस्ट में बेहतर कर सकता है। इसका परिणाम यही है कि यदि छात्र का एक ही तरीके से मूल्यांकन किया जाता है वह मेरिटोरियस छात्र नहीं कहा जा सकता।
नई दिल्ली |
नीट में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 आरक्षण का फैसला देने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसे मिथक तोड़े हैं जिससे पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की सोच में बड़ा बदलाव आया है। कोर्ट ने कहा है कि उच्च अंक लाना मेरिट की पहचान नहीं है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा है कि आरक्षण विरोधी, दलील देते हैं कि आरक्षण नीति मेरिट आधारित समाज के विरुद्ध है। परीक्षाएं शैक्षणिक अवसरों को वितरित करने का एक आवश्यक और सहज तरीका मात्र हैं। परीक्षा के अंक हमेशा मेरिट तय करने का सही पैमाना नहीं होते। विशेष सुविधा वजह