इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी विशेष सेवा के लिए निर्धारित की जा सकने वाली किसी विशेष योग्यता की वांछनीयता का निर्धारण या मूल्यांकन न्यायालय नहीं कर सकता है। यह नीतिगत मामला है और नियोक्ता के अधीन है। लिहाजा, हाईकोर्ट उसके अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने याची कविता सोनकर की याचिका को खारिज देते हुए दिया है।
याचिका में याची उत्तर प्रदेश लोक सेवा द्वारा 2014 में आयोजित आरओ/एआरओ भर्ती परीक्षा की चयचित हो गई थी। बाद में उसे नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था। अंकपत्रों और प्रमाणपत्रों के निरीक्षण केदौरान पाया गया कि उसके द्वारा जमा किए गए कंप्यूटर एप्लीकेशन में ओ लेवल प्रमाणपत्र की मान्यता नहीं है
नियोक्ता और विशेषज्ञ ही कर सकते हैं योग्यता का मूल्यांकन
इस आधार पर आयोग ने उसकी नियुक्ति को रद्द कर दिया था। याची ने कोर्ट के समक्ष अपने नियुक्ति संबंधी आदेश को रद्द करने की चुनौती दी थी। मांग की गई थी कि उसकी नियुक्ति की जाए। कोर्ट ने पाया कि याची की ओर से जमा किए गए डीसीए सर्टिफिकेट की मान्यता ओ लेवल या उसके समकक्ष नहीं है। इस आधार पर वह सहायक समीक्षा अधिकारी पद के लिए अर्ह नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि यह न्यायालय का कार्य नहीं है कि वह निर्धारित की जा सकने वाली किसी विशेष योग्यता की वांछनीयता का न्याय या मूल्यांकन करें। यह काम नियोक्ता और क्षेत्र के विशेषज्ञों के निष्पक्ष निर्णय और मूल्यांकन पर छोड़ देना चाहिए। कोर्ट ने इस मामले में जहूर अहमद राथर और इम्तियाज अहमद के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला भी दिया।