रायबरेली : आम इंसान मंहगाई भ्रष्टचार जैसे तमाम सरोकार से तो लड़ सकता है परंतु जब उनके नीनिहालों की शिक्षा को लेकर अधिकारी शिक्षा नीतियों को लागू करते समय यह भी ध्यान न दें कि बच्चों का हित सुरक्षित और संरक्षित है तो यह जनरत में कार्य करने की सौगंध खाने वाले अधिकारियों के लिए बेहद गंभीर सवाल है। जनपद के लगभग सभी ग्राम सभाओं में एक से अधिक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय संचालित है जिसमें पढ़ने वाले अधिकतर निर्धन और असहाय ग्रामीणों के बच्चे ही शिक्षा ग्रहण करते है जिन्हें मिड डे मील के नाम पर भोजन वस्त्र बैग और जूते देने का काम सरकार कर रही है। पढ़ाई तो दूर जब उन्हें उनकी पढ़ाई का प्रति देने के लिए परीक्षा में सम्मिलित किया जाता है तो न उत्तर पुस्तिकाएं न प्रश्न पत्र न ही परीक्षा को आयोजित कराने वाले शिक्षक मानक के अनुरूप शामिल हो पाते हैं। यह सकल महज सवाल नहीं है
अपितु मार्च में आयोजित की गई प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में परीक्षाओं का हाल बयां कर रही हैं। बिना कॉपी पेपर शिक्षकों के विभिन्न व्यवस्थाओं में आयोजित हुई परीक्षाओं का आखिर में क्या हुआ और तो और अप्रैल माह का एक पखवारा बीतने वाला है और अभी तक नौनिहालों को उनका रिपोर्ट कार्ड भी नहीं मिल सका। जैसे जैसे व्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार लोगों
की दरों को की आवश्यकता शायद न भी तो पिर भी क्या लाखों की संख्या में देश निर्माण और राष्ट्रहित में पढ़ लिख कर आगे आने वाले इन नौनिहालों का आखिर क्या कुसूर है जो इन्हें शिक्षा के नाम पर चलाना मिल रहा है। सत्ता सरकार शासन कहने को अलग-अलग 3 शब्द है परंतु इनके जुड़ते हरे प्राथमिक और उच्च शिक्षा की व्यवस्था पेपर ट्री होती जा रही है वे आखिर इसका कसूरवार कौन है प्राथमिक एवं उत्तच विद्यालयों में शिक्षकों के भी तमाम मोकार शासन और सत्ता से जुड़े होने के कारण शिक्षा की बदहाली प्रमुख कारण माना जा सकता है। ऐसे में बस आम जनमानस में गरीब असहाय लोगों के बच्चों को शिक्षा के सरोकार से दूर रखना यही असली सरकारी मिशनरियों का इसाफ है।