स्पेन महिलाओं को ‘पीरियड लीव’ देने वाला पहला देश बन गया है। अपने यहां भी ऐसी मांग हो रही है। हालांकि, इससे कार्यस्थल पर भेदभाव बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है।
बढ़ सकती है संवेदनशीलता
दुनिया भर में ‘पीरियड लीव’ (मासिक धर्म के दौरान अवकाश) को लेकर मुहिम छिड़ी हुई है। लेकिन हम अब भी उसी मानसिकता से संघर्ष कर रहे हैं, जहां अक्सर यह माना जाता है कि महिलाओं को नौकरी पर रखो, तो वे कभी मातृत्व अवकाश लेंगी, कभी बच्चों की देखभाल के लिए अवकाश। इस बात को लेकर न जाने कितने अनर्गल कमेंट किए जाते हैं। ऐसे में, पीरियड लीव की बात पर संवेदनशीलता की उम्मीद करना बेमानी ही लगता है। मगर मैं जिस संस्थान में कार्यरत हूं, वहां महिलाओं को महीने में दो दिन का ‘मासिक धर्म अवकाश’ दिए जाने का निर्णय लिया गया है। इस फैसले में मैं सहभागी रही हूं और मेरे लिए यह निजी खुशी भी है। उम्मीद है, इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ेगी और आने वाले दिनों में सभी जगह पीरियड लीव का नियम लागू किया जाएगा।
श्रुति कुशवाहा
कितना कम जानते हैं हम
मासिक धर्म के दौरान अवकाश एक जरूरी पहल है। इसे बाकायदा प्रचारित किया जाना चाहिए, ताकि आम दिमागों के कीड़े झड़ सकें और लोगों की समझ बढ़ सके। सभी को ‘पीरियड्स’ से ‘मैनोपॉज’ तक तमाम जरूरी बातें सिखाई जानी चाहिए। जिस शरीर को लेकर तरह-तरह की कविता-कहानियां, शेर-ओ-शायरी, चुटकुले आदि सतत उछाले जाते हैं, उसको आखिर लोग कितना कम जानते हैं!
राकेश दीवान
शरीर को लेकर शर्म कैसी
माहवारी जैसे मुद्दे पर महिलाएं हमेशा शर्मिंदगी महसूस करती हैं, परंतु अब वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, इसलिए उनके लिए यह मुद्दा शर्म वाला नहीं होना चाहिए। इस पर उनको खुलकर अपनी बात रखनी चाहिए। इसकी शुरुआत महिला खिलाड़ियों ने कर दी है। यह समझना होगा कि मासिक धर्म एक प्राकृतिक स्थिति है, इसलिए इस मुद्दे पर किसी चर्चा से झिझकने का कोई मतलब नहीं है।
शैलबाला कुमारी
इस अवकाश की मांग गलत
मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अवकाश देने की मांग से मेरा विरोध है। जब महिलाएं बराबरी की मांग करती हैं, तो ‘पीरियड्स’ के दौरान छुट्टी क्यों? जब घर में दादी-नानी अलग बैठा देती थीं रजस्वला महिलाओं को, तब हमने विरोध किया उनका। कहा, इससे दुनिया को पता चल जाता है कि हमारे पीरियड्स हैं। हम इस दौरान सब कुछ कर सकते हैं, तो इसे ऑफिस में सबको क्यों बताना? हां, यदि किसी महिला को ज्यादा तकलीफ होती है, तो वह अवकाश ले सकती है। अब तो ‘वर्क फ्रॉम होम’ भी संभव है। इसलिए, पीरियड लीव महिलाओं को पीछे धकेलने जैसी है। बराबरी की मांग करने वाली महिलाओं को इस तरह के अवकाश की मांग नहीं करनी चाहिए।
शिल्पा शर्मा
आराम नहीं कर सकेंगी वे
हमारी पुरानी संस्कृति में यह सुविधा तो हर घरेलू महिला या घर की लड़की को समाज ने दे रखी थी कि ‘उन दिनों’ में वह घर का काम न करें। उन्हें अलग कोने में बैठा दिया जाता था, जो शायद इस मंशा के साथ किया जाता होगा कि इससे उनको आराम करने का मौका मिल सकेगा। जब कोई इस तरह से ‘आराम’ करने लगता था, तो छोटे-छोटे बच्चों को यही कहा जाता कि काले कौए की छाया पड़ गई है, इसलिए अभी उनके पास नहीं जाना है। मतलब, असली बात छिपाकर घरेलू महिला को इस वक्त में आराम कैसे दिया जाए, इस पर सोचा होगा उन लोगों ने। रही बात आज की, तो पीरियड्स के दौरान अवकाश देने की व्यवस्था करने से यह दावे के साथ नहीं कह सकते कि इससे महिलाएं आराम कर सकेंगी? मेरा मानना है कि वे घर का काम करेंगी, जो व्यस्तता के कारण नहीं कर पाती होंगी, क्योंकि आज ज्यादातर महिलाएं कामकाजी होने के साथ-साथ घरेलू भी हैं। इसलिए पीरियड लीव द्वारा महिलाओं का आराम देने का उद्देश्य सार्थक नहीं हो सकेगा। सिर्फ कार्यस्थल पर अवकाश देने से महिलाएं शायद ही आराम कर पाएंगी।
खंडवा तरुण मंडलोई