योगी आदित्यनाथ सरकार पिछले 10 वर्षों में सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग आरक्षण में ओबीसी प्रतिनिधित्व का आकलन कराने जा रही है। इसके तहत यूपी सरकार की नौकरियों में ओबीसी की 79 उपजातियों के हिसाब से कर्मचारियों की गिनती की जाएगी। अब सवाल उठ रहे हैं क्या भाजपा सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटकर सपा और बसपा की घेराबंदी के प्लान पर काम कर रही है? या फिर इसके पीछे कोई दूसरी रणनीति है।
योगी सरकार के निर्देश के मुताबिक अगले कुछ दिनों में विभागवार समूह ‘क’ से लेकर समूह ‘घ’ तक के कुल पदों व नियुक्त कार्मिकों का ब्यौरा एकत्र करने का अभियान चलेगा। इसके लिए सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों को शासन ने पत्र भेज कर पूरा ब्यौरा मांगा है। इसके तहत पदों का विवरण संवर्गवार देना है। इसके बाद स्वीकृत पद, भरे गए पद, ओबीसी के लिए तय पद, ओबीसी से भरे गए पद, सामान्य श्रेणी में चयनित ओबीसी की संख्या, कुल भरे गए पदों के मुकाबले ओबीसी का प्रतिशत आदि की पूरी जानकारी देनी है।
इसी के साथ आरक्षण कोटा पूरा हुआ है या नहीं यह भी बताना है। इसके अलावा पहली बार समूह ‘क’ से समूह ‘घ’ तक के पदों में ओबीसी की उपजातियों की स्थिति बतानी है। अन्य पिछड़ा वर्ग की करीब 79 उपजातियां इसमें शामिल की गई हैं। जनवरी 2010 से मार्च 2020 तक विभिन्न विभागों में की गई कुल नियुक्तियों में चयनित अभ्यर्थियों का जातिवार विवरण सार्वजनिक उद्यम ब्यूरो ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों से मांगा है। इस सम्बन्ध में 83 विभागों में से 40 के अधिकारियों की एक बैठक 23 अगस्त को और बाकी विभागों के अधिकारियों की बैठक 24 अगस्त को बुलाई गई है।
किस जाति को ज्यादा और किसे कम लाभ
योगी आदित्यनाथ सरकार के इस नए निर्देश से उत्तर प्रदेश की सरकारी नौकरियों में ओबीसी जातियों की स्थिति का पता चलेगा। किस जाति को आरक्षण का ज्यादा लाभ मिला और किसे कम ये बातें सार्वजनिक हो जाएंगी। जिन 10 वर्षों का आंकड़ा मांगा गया है उसमें दो साल सुश्री मायावती की अगुवाई वाली बीएसपी और पांच साल अखिलेश यादव की अगुवाई वाली सपा ने शासन किया है। योगी आदित्यनाथ सरकार के भी तीन साल शामिल हैं।
मंडल कमीशन का फायदा किसे
माना जाता है कि मंडल कमीशन की सिफारिशों के जरिए लागू किए गए 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का यूपी में सबसे अधिक फायदा कुछ ही जातियों को मिला। ओबीसी की कई जातियां इस आरक्षण का ज्यादा फायदा नहीं उठा सकीं।
ये है चर्चा
जब भी ओबीसी का जिक्र आता है तो पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग की बात की जाती है। कहा जाता है कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से पिछड़ा वर्ग सब ल हो चुके हैं। जबकि अति पिछड़ी जातियां, पिछड़ी जातियों के मुकाबले इन सभी स्तरों पर कमजोर हैं। इसी तरह अत्यंत पिछड़ी जातियां बहुत कमजोर हैं। चर्चा है कि भाजपा की रणनीति ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने के अपने पुराने एजेंडे को लागू करने की है। ओबीसी आरक्षण के आकलन के लिए योगी सरकार द्वारा जस्टिस राघवेंद्र सिंह की अगुवाई में बनी कमेटी अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है। बताया जा रहा है कि इस कमेटी ने भी ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने की सिफारिश की है। यदि 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटा जाता है तो इसका लाभ उन जातियों को मिल सकता है जो आरक्षण के दायरे में रहते हुए भी अभी तक भरपूर फायदा नहीं उठा सकीं। वहीं अपेक्षाकृत सबल मानी जाने वाली जातियों को झटका भी लग सकता है। जाहिर है कि इस मामले में किसी भी कदम के सियासी परिणाम होंगे।
सरल नहीं है राह
उत्तर प्रदेश में यादव वर्ग को जहां समाजवादी पार्टी का मजबूत वोटबैंक माना जाता है। वहीं चौरसिया, कुशवाहा, जाट, सोनार और कुर्मी वोटर पिछले कुछ चुनावों से भाजपा और उसके सहयोगी दलों का साथ देते रहे हैं। सबल हो चुकीं ओबीसी जातियों के बीच भी पिछले कुछ वर्षों में भाजपा का एक मजबूत आधार बन चुका है। ऐसे में उसके लिए भी इस मुद्दे पर कोई कदम उठाना इतना सीधा और सरल नहीं है।
उधर, प्रदेश की राजनीति में भाजपा के साथ खड़े अपना दल और निषाद पार्टी जैसे संगठन भी जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी की मांग करते आए हैं। दलितों के साथ अति पिछड़ी जातियों के बीच लम्बे समय तक मजबूत आधार बनाए रखने में कामयाब रही बसपा भी इस मुद्दे पर नज़र बनाए हुए है। बहरहाल देखना है कि पिछड़ा वर्ग आरक्षण में ओबीसी प्रतिनिधित्व का आकलन कराने के बाद भाजपा सरकार का अगला कदम क्या होता है? और उस कदम का 2024 में यूपी की सियासत पर क्या असर पड़ता है?