इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को जेलों में चिकित्सकों व अन्य स्टाफ के खाली पदों को समयबद्ध योजना के तहत भरने का निर्देश दिया है। साथ ही कहा है कि कैदियों की चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाने व उन्हें न्यूनतम मजदूरी के अनुपात में पारिश्रमिक देने पर भी विचार करें। कोर्ट ने पेश हुए वित्त सचिव को प्रस्ताव की फाइल पर चिड़िया बैठाकर न बैठने की नसीहत दी और कहा कि प्रस्तावों पर यथाशीघ्र मंजूरी दी जाए।
कोर्ट ने हाजिर हुए वित्त सचिव व आईजी कारागार को अगली तिथि 10 नवंबर को कार्ययोजना के साथ पुन: उपस्थित रहने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने जेलों की दशा व सजायाफ्ता कैदियों की समय पूर्व रिहाई की सरकारी नीति को लेकर दाखिल हलफनामे को संतोषजनक नहीं माना और कहा कि जो बातें बताई गई हैं, मौके के निरीक्षण के समय उनका नामोनिशान नहीं मिलता। कोर्ट ने आईजी कारागार की भी खिंचाई की और कहा जेलों में क्षमता से अधिक कैदी और 80 साल के वृद्ध कैदियों की रिहाई न करने तथा जेल अपीलें दाखिल करने में वर्षों की देरी करने पर कार्रवाई की जाए।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर की खंडपीठ ने लंबे समय से जेलों में बंद कैदियों की समय पूर्व रिहाई व जेलों की दशा सुधारने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिया है।
साल में एक बार पैरोल पर रिहा किया जाए कैदी
महाधिवक्ता अजय मिश्र ने कोर्ट के समक्ष पूर्व रिहाई के 26 जुलाई 22 के आदेश की अनुपालन रिपोर्ट के साथ हलफनामा दाखिल किया। बताया प्रदेश में 3400 अपीलें विचाराधीन है। अन्य ब्योरा नहीं होने पर कोर्ट ने असंतोष जताया। यह भी बताया कि 2018 से 653 कैदियों को पैरोल मिली है। सरकार ने माना कि जेलों की क्षमता से अधिक कैदी हैं।
इसकी प्रक्रिया पूछने पर आई जी कारागार ने बताया कि पुलिस व जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर रिहाई की जाती है। इसपर कोर्ट ने कहा कि कैदियों के घर न जाकर आफिस में कागजी कार्यवाही की जाती है। कैदियों को परिवार से मिलने का अधिकार है। यदि 15 साल बाद कैदी घर जाएगा तो उसे कोई पहचान ही नहीं सकेगा। साल में एक बार पैरोल पर रिहा किया जाना चाहिए।
लंबरदार चला रहे जेल की व्यवस्था
कोर्ट ने कहा जेल अथॉरिटी को स्वयं भी रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए। बहुत से कैदी सजा से अधिक समय तक जेलों में बंद हैं। कोई सुधि लेने वाला नहीं है। कोर्ट ने जेल के मेडिकल स्टाफ के खाली पदों को भरने पर बल देते हुए कहा कि लंबरदार ही जेल व्यवस्था चला रहे हैं। कोर्ट ने कहा एक लाख अट्ठारह हजार छ: सौ सत्तर कैदी जेलों में है, जिसमें से 70 फीसदी विचाराधीन कैदी हैं।
कोर्ट ने हाईकोर्ट में एक जज पर चार पीए/एपीएस के प्रस्ताव पर जरूरत पूछने पर नाराजगी जताई और कहा कि सरकार नहीं हम तय करेंगे कि कितने स्टाफ की जरूरत है। कोर्ट ने कैदियों को काम के बदले काफी कम पारिश्रमिक देने पर भी सवाल उठाए। कहा, तय न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जाती। मजदूरी बढ़नी चाहिए।
जेलों में अमानवीय स्थिति
जेल की दशा पर बनी कमेटी 2011 के बाद बैठ नहीं सकी। कोर्ट ने कहा हलफनामा काबिले तारीफ है, किंतु सच्चाई से बहुत दूर है। कहा जेल में कंबल, चादर, सिलाई-कढ़ाई, कारपेंटरी का काम होता है, किंतु निरीक्षण के समय दिखाई नहीं देता। जेल में खाने की गुणवत्ता ठीक नहीं है। अमानवीय स्थिति है।
महाधिवक्ता ने बताया प्रदेश में 252 एनजीओ जेलों में काम कर रहे हैं। कोर्ट ने टेलीमेडिसिन सिस्टम अपनाने पर जोर दिया। कहा जेल में ही इलाज की व्यवस्था हो। कोर्ट ने कहा 31 में से 29 एक्सरे टेक्नीशियन के पद खाली हैं। कोर्ट ने कई जेलों की दुर्दशा का हवाला दिया। याचिका की सुनवाई 10 नवंबर को होगी। कोर्ट ने उस दिन भी अधिकारियों को हाजिर होने का निर्देश दिया है।