प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि सेवा निवृत्ति से पहले कोई न्यायिक या विभागीय कार्यवाही विचाराधीन नहीं है तो कर्मचारी की पेंशन आदि सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान रोका नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा कि रेलवे याची को जारी जाति प्रमाणपत्र की वैधानिक जांच कराने में विफल रहा तो वह यह नहीं कह सकता कि
अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र फर्जी है। ऐसे में अपनी निष्क्रियता के चलते पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर को याची की पेंशन आदि रोकने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने रेलवे को सात फीसद ब्याज के साथ याची को आठ अप्रैल 2016 से बकाये का चार माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की खंडपीठ ने चंद्र प्रकाश की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची अनुसूचित जाति (भुजिया) कोटे में सहायक टेलीकम्युनिकेशन इंस्पेक्टर पद पर चयनित हुआ। सेवा के 12 साल बाद जाति प्रमाणपत्र को लेकर जांच शुरू हुई। जिलाधिकारी की रिपोर्ट में याची को अनुसूचित जाति का न होकर ओबीसी बताया गया। धोखाधड़ी के आरोप में एफआइआर दर्ज कराई गई। पुलिस चार्जशीट के बाद कोर्ट ने याची को बरी कर दिया और जिलाधिकारी को अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया। इस आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका खारिज हो गई। याची की पदोन्नति हुई और वह सेवानिवृत्त हो गया। इसके बाद रेलवे महाप्रबंधक ने याची की पेंशन आदि रोकने का आदेश दिया। जिसे केंद्रीय न्यायाधिकरण प्रयागराज में चुनौती दी गई।