लखनऊ, पिछले सात साल से अपनी ही पेंशन के लिए सेना से सेवानिवृत्त एक आनरेरी कैप्टन भटकता रहा। पेंशन न मिलने पर आनरेरी कैप्टन को मजदूरी करने पर विवश होना पड़ा। आनरेरी कैप्टन की आवाज सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ बेंच में उठी। यहां मामले की सुनवाई करते हुए न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति उमेशचंद्र श्रीवास्तव और प्रशासनिक सदस्य वाइस एडमिरल (अवकाशप्राप्त ) अभय रघुनाथ कार्वे की खंडपीठ ने बैंक को आदेश दिया कि वह पत्नी के विवाद के कारण संयुक्त खाते में पेंशनर की पेंशन पर रोक लगा सकती है, लेकिन वह पेंशनर का पेंशन खाता स्थानांतरित करने से इंकार नहीं कर सकता है। फर्रुखाबाद फतेहगढ़ स्थित पंजाब नेशनल बैंक शाखा को पेंशनर का पेंशन खाता तीन माह के भीतर स्थानांतरित करने के आदेश बेंच ने दिए।
फर्रुखाबाद निवासी आनरेरी कैप्टन जयपाल सिंह 30 वर्ष की सैन्य सेवा के बाद सन 2012 में सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी पेंशन पत्नी राधादेवी के साथ खुले संयुक्त खाते में आ रही थी। वर्ष 2015 में पत्नी ने पारिवारिक विवाद के कारण याची के पेंशन खाते से पैसा निकालने पर रोक लगाने का प्रार्थना पत्र दे दिया। जिस पर शाखा प्रबंधक ने आनरेरी कैप्टन जयपाल सिंह को पेंशन निकालने पर रोक लगा दी। याची 2015 से लेकर लगातार याचना करता रहा कि उसकी पेंशन उसके एकल खाते में स्थानांतरित कर दी जाए। लेकिन बैंक ने उसे सिरे से खारिज कर दिया। पेंशन न मिलने पर आनरेरी कैप्टन जयपाल सिंह मजदूरी करने लगे।
याची ने अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय के माध्यम से सशस्त्र बल अधिकरण लखनऊ बेंच में वाद दायर किया। अधिवक्ता ने दलील दी कि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता क्योंकि पेंशन लंबी और कठिन सेवा से अर्जित किया गया मौलिक अधिकार है। इसलिए बैंक का पेंशन खाते को दूसरी शाखा में स्थानांतरित न करना मूलभूत अधिकारों का हनन है। अधिवक्ता ने भारत सरकार के पीसीडीए (पेंशन) इलाहाबाद के पत्र दिनांक एक अप्रैल 2011 और सर्कुलर नंंबर 206 का हवाला भी दिया ।