इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याची द्वारा भौतिक तथ्यों को छुपाने पर नाराजगी जताई है। उसने इसके लिए याची पर 50 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। कोर्ट ने कहा है कि याची को इस हर्जाने को इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन केखाते में जमा करना होगा। अगर याची हर्जाने की रकम को नहीं जमा करता है तो उसकी प्राप्ति के लिए हाईकोर्ट बार एसोसिएशन अर्जी दाखिल कर सकती है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने राम प्रसाद राजौरिया की जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
कोर्ट ने मामले में गंभीर टिप्पणी भी की। कहा कि 40 वर्षों में नैतिक मूल्यों में कमी आई है। अब वादी अदालत को गुमराह करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उनके पास सच्चाई का कोई सम्मान नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याची उसी राहत का दावा करते हुए पहले हाईकोर्ट आ चुका है। कोर्ट ने उसकी याचिका को 15 मार्च 2018 खारिज कर दिया था। याची ने इस जानकारी को कोर्ट से छुपाई।
प्रतिवादी के अधिवक्ता ने इस तथ्य को सामने रखा। कोर्ट ने इसे न्याय का दुरूपयोग बताया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट केएक फैसले का हवाला दिया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोर्ट कोई खेल का मैदान नहीं है। मामले में तथ्यों को छुपाया गया था। मामला हाथरस के तहसील सिकंद्रा राव के बराई ग्राम पंचायत का है। याची ने ग्राम पंचायत के विकास के लिए दो व्यक्तियों पर सरकार के पैसे का गबन का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की थी।
स्वतंत्रता पूर्व युग में सत्य न्याय वितरण प्रणाली का अभिन्न अंग
कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व युग में सत्य न्याय वितरण प्रणाली का एक अभिन्न अंग था। हालांकि, स्वतंत्रता के बाद की अवधि में हमारी मूल्य प्रणाली में भारी बदलाव देखा गया है। भौतिकवाद ने पुराने लोकाचार को ढक दिया है और व्यक्तिगत लाभ की तलाश इतनी तीव्र हो गई है कि मुकदमेबाजी में शामिल लोग अदालती कार्यवाही में झूठ गलत बयानी और तथ्यों के दमन का आश्रय लेने से नहीं हिचकिचाते।
पिछले 40 वर्षों में मूल्यों में गिरावट आई है और अब वादी अदालत को गुमराह करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। सत्य के प्रति उनके मन में कोई सम्मान नहीं है। वादियों की इस नई नस्ल द्वारा पेश की गई चुनौती का सामना करने के लिए सिद्धांत विकसित किए गए हैं। अब यह अच्छी तरह से तय हो गया है कि एक वादी जो न्याय को प्रदूषित करने का प्रयास करता है या जो दागी हाथों से न्याय के शुद्ध फव्वारे को छूता है। वह किसी भी राहत अंतरिम या अंतिम का हकदार नहीं है। न्यायालय से भौतिक तथ्यों को छिपाना वास्तव में न्यायालय के साथ धोखाधड़ी का खेल है।