हाईकोर्ट ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के लिए चल रहे साक्षात्कार को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। याचिका में साक्षात्कार के लिए तैयार सूची को रद्द करके नए सिरे से सूची तैयार करने और एक पद के सापेक्ष कम से कम 15 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में बुलाने की मांग की गई थी।
यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने डॉ. अमिता सिंह व आठ अन्य की याचिका को तथ्यहीन व पोषणीय न पाते हुए दिया है। याची के अधिवक्ता आलोक मिश्र का कहना था कि संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए चल रहे साक्षात्कार में सामान्य वर्ग के आठ अभ्यर्थियों को बुलाया गया है। कहा गया है कि ऐसा करके विश्वविद्यालय ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। कहा गया कि एक पद के सापेक्ष कम से कम 15 को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाना चाहिए। अधिवक्ता का तर्क था कि विश्वविद्यालय ने याचियों के एपीआई मार्क्स की गणना में गलती की है और उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। याचिका का विरोध कर रहे विश्वविद्यालय के अधिवक्ता क्षितिज शैलेंद्र का कहना था कि नौ लोगों की ओर से एक ही याचिका दाखिल की गई है जो सिविल प्रक्रिया संहिता के नियमों का उल्लंघन है। प्रत्येक याची का केस अलग है और याचिका में उसका ब्योरा नहीं दिया गया है। ऐसे में याचिका जनहित याचिका जैसी दाखिल की गई है। विश्वविद्यालय के अधिवक्ता ने प्रदीप कुमार राय बनाम दिनेश कुमार पांडेय के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में एक पद के सापेक्ष तीन अभ्यर्थियों को बुलाने को चुनौती दी गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए रद्द दिया था कि ऐसा कोई कानून नहीं है कि एक पद के सापेक्ष कितने लोगों को बुलाया जाए। इन तर्कों के आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।