सहायक अध्यापकों की ओर से अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी और अन्य का कहना था कि याची पहले से सहायक अध्यापक पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने 69000 सहायक अध्यापक पद के लिए भी आवेदन किया और अधिक अंक प्राप्त किए। उन्हें अपनी पसंद के जिले में नियुक्ति पाने का अधिकार है। लेकिन सरकार ने चार दिसंबर 2020 के शासनादेश में पहले से कार्यरत अध्यापकों को काउंसिलिंग में शामिल होने के किए अनापत्ति देने से मना कर दिया है। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन है। एकल पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए दोबारा चयनित सभी अध्यापकों को एनओसी देने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ सरकार ने अपील दाखिल की थी।
प्रयागराज, । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पहले से सहायक अध्यापक पद पर कार्य कर रहे अभ्यर्थियों को दोबारा इसी पद पर आवेदन करने और चयनित होने का अधिकार है। ऐसा करके अभ्यर्थी अपने अंक बढ़ा सकते हैं और अपनी पसंद के जिले में नियुक्ति पा सकते हैं। उन्हें इस अधिकार का उपयोग करने से रोका नहीं जा सकता है। इसी के साथ कोर्ट ने इस संबंध में एकल पीठ के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की विशेष अपील खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है। इससे पूर्व एकल पीठ ने अभ्यर्थियों की याचिका स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के चार दिसंबर 2020 के शासनादेश के पैरा पांच एक को असंवैधानिक, मनमानापूर्ण और अधिकार क्षेत्र से बाहर करार देते हुए रद्द कर दिया था। इस शासनादेश से राज्य सरकार ने उन अभ्यर्थियों को 69000 सहायक अध्यापक पद के लिए चयनित होने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया था जो पहले से सहायक अध्यापक पद पर कार्यरत थे। एकल पीठ का कहना था कि पहले से सहायक अध्यापक पद पर काम कर रहे अभ्यर्थियों को दोबारा उसी पद के लिए आवेदन करने पर कोई रोक नहीं है। याचियों के अधिक अंक लाने से वे अपने पसंद के जिले में नियुक्ति पा सकेंगे। कोर्ट ने राज्य सरकार के उस तर्क को नहीं माना, जिसमें कहा गया था कि सहायक अध्यापकों के पास अंतर जिला स्थानांतरण का विकल्प मौजूद है।
उनके दोबारा उसी पद के लिए आवेदन करने से शिक्षकों के सभी पद भरे जाने की सरकार की मंशा प्रभावित होगी और शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उद्देश्य विफल होगा। इस फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि एकल पीठ ने राज्य सरकार के तर्कों पर ध्यान नहीं दिया है। सरकार को अपने कर्मचारियों को दोबारा उसी पद पर चयनित होने से रोकने का अधिकार है। चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब उसमें हस्तक्षेप से प्रक्रिया प्रभावित होगी। सहायक अध्यापकों के पास स्थानांतरण का विकल्प है। साथ ही एकल पीठ के आदेश से शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उद्देश्य विफल होगा। खंडपीठ ने कहा कि एकल पीठ ने इन सभी पहलुओं पर विधिवत विचार के बाद आदेश किया है। आदेश में कोई खामी नहीं है। सरकार पहले से कार्यरत सहायक अध्यापकों को दोबारा उसी पद पर आवेदन करने से रोक नहीं सकती है। यह उनका अधिकार है।
जहां तक अंतर जिला स्थानांतरण की बात है तो यह एक सामान्य प्रक्रिया नहीं है और अध्यापक इसे अपने अधिकार के तौर पर नहीं प्राप्त कर सकते हैं।