इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के अफसरों की कार्यशैली पर अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी नियमित रूप से न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना कर आदेश पारित कर रहे हैं। वे अदालत के आदेशों का सम्मान नहीं कर रहे हैं। वे उन्हीं आदेशों को दोबारा जारी कर रहे हैं, जिन्हें निरस्त कर नया आदेश पारित करने के निर्देश दिए जाते हैं।
कोर्ट इसे न्यायालय की अवमानना ही नहीं बल्कि कदाचार की श्रेणी में भी माना है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने अश्वनी कुमार त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
याची अश्वनी कुमार त्रिपाठी इटावा में बतौर शिक्षक सेवानिवृत्त हुए थे। याची का कहना था कि सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन भुगतान के लिए तदर्थ सेवा अवधि को नहीं जोड़ा गया। विभाग ने इस तर्क के आधार पर पेंशन देने से मना कर दिया था कि याची ने विनियमितीकरण के बाद 10 साल की अर्हक सेवा पूरी नहीं की है। विभाग के आदेश को याची ने न्यायालय में चुनौती दी थी। न्यायालय ने विभाग को सुनीता शर्मा केस में दिए गए आदेश के अनुसार पेंशन दावे पर विचार करने का निर्देश दिया था। याची ने कहा कि विभाग ने न्यायालय के आदेश के उपरांत भी पुराने आधार पर पेंशन जारी करने से मना कर दिया है ।
इस पर न्यायालय ने शिक्षाधिकारियों के आचरण पर नाराजगी जताते हुए आदेश जारी करने वाली कमेटी में शामिल संयुक्त निदेशक कानपुर केके गुप्ता, डीडीआर कानपुर प्रेम प्रकाश मौर्य, डीआईओएस इटावा राजू राणा को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। बाद की सुनवाई के दौरान शिक्षाधिकारियों ने न्यायालय के आदेश का अनुपालन कर दिया तो कोर्ट ने याचिका को निस्तारित कर दिया।