प्रयागराज । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) नई दिल्ली ने शोध के नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। सात नवंबर को जारी गजट के अनुसार अब कहीं भी सेवारत कर्मचारी या शिक्षक पार्टटाइम पीएचडी कर सकेंगे। पहले सरकारी सेवारत कर्मचारियों या शिक्षकों को शोध करने के लिए अपने विभाग से अध्ययन अवकाश लेना पड़ता था।
थीसिस के मूल्यांकन के लिए तीन परीक्षकों की प्रथा थी जिसमें एक गाइड और दो बाह्य परीक्षक। सामान्य तौर पर बाह्य परीक्षक में एक अपने राज्य और दूसरा अन्य राज्य का होता था। अब यूजीसी ने कहा है कि एक परीक्षक अपने संस्थान के बाहर का हो और दूसरा विदेश का ख्यातिलब्ध शिक्षाविद हो। तीसरी खास बात है कि ऑनलाइन या दूरस्थ विधि से शोध कार्य की मान्यता नहीं है। इस पर काफी समय तक विचार विमर्श होता रहा कि मान्य है या नहीं।
अब यूजीसी ने साफ कर दिया है कि ऑनलाइन या दूरस्थ विधि से पीएचडी नहीं की जा सकती। ऐसे स्थायी अध्यापक जिनकी सेवानिवृत्ति में तीन साल बचे हैं वह शोध के लिए किसी छात्र का नामांकन नहीं करा सकते, हालांकि वह को-गाइड के रूप में अधिकतम 70 वर्ष तक पीएचडी करा सकते हैं।
सबसे खास बात है कि पहले थीसिस जमा कराने से पहले शोधार्थी को कम से कम दो शोधपत्र संदर्भित शोध पत्रिकाओं में छपवाना पड़ता था। अब इसकी छूट दी गई है। शोध की प्रक्रिया के दौरान दो शोधपत्र छपवाने की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। इसके अलावा जब कोई थीसिस जमा कर दे तो विश्वविद्यालयों को अधिकतम छह महीने के अंदर वायवा कराना होगा।
पहले छात्र थीसिस जमा करने के बाद सालभर डेढ़ साल तक वायवा के लिए चक्कर काटते रहते थे। अब यूजीसी ने इसे समयबद्ध कर दिया है। अब पीएचडी कम से तीन वर्ष की होगी इसमें छह माह का कोर्स वर्क शामिल होगी। पीएचडी पूरी करने की अधिकतम अवधि छह वर्ष की होगी। राजकीय पीजी कॉलेज सैदाबाद में जन्तु विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. एके वर्मा ने कहा कि इन बदलावों से शोध कार्य समययबद्ध और गुणवत्तापूर्ण तरीके से होंगे। साथ ही नौकरीपेशा लोगों को बड़ी राहत मिलेगी।